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जून, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सिकंदर के बाद इन आक्रमणकारिओ ने भारत पर आक्रमण किया था

 सिकंदर के बाद इन आक्रमणकारिओ ने भारत पर आक्रमण किया था  ये बात उस समय कि हैं जब अलेक्जेंडर ने भारत पर आक्रमण किया था और राजा पोरस से हारने के बाद वो अपने देश मकदुनिया वापस चला गया था , लेकिन उसके वापस चले के बाद भी भारत के पक्षिमी सीमा पर विदेशी आक्रमण होते रहे| उनलोगों ने एशिया के विभिन्न स्थानों पर अपना प्रभुत्व कायम कर लिया था| भारत कि पक्षिमी सीमा पर भी उनके अड्डे थे , लेकिन जब मौर्यो की प्रधानता बढ़ी तो वे इधर बढ़ने में असमर्थ रहे| उनका प्रमुख केंद्र बैक्ट्रिया था , जिसकी स्थपना सिकंदर ने भारत अभियान के दौरान की थी| सैनिक दृष्टिकोण से बैक्ट्रिया बहुत ही सुरक्षित स्थान था , क्युकी पूर्व में हिंदुकुश और पामिर की श्रेणिया इसकी सीमा निश्चित करती थी , दक्षिण में अरकोशिया प्रदेश , पक्षिम में पार्थिया का राज्य और केसपियन सागर इसकी रक्षा करता था| बैक्ट्रियया की समृद्धि इसकी उर्वरता पर आरधरित थी| यूरोप और एशिया के यातायात कर मार्गों के मध्य में सतिथ होने के कारण इसका व्यापारिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्व था| बहुमूल्य खानों के लिए ये प्रसिद्ध था| लेकिन यहाँ सोने और चांदी का अभाव था|...

आखिर पल्लव कौन थे और कहाँ से आए थे

आखिर पल्लव कौन थे और कहाँ से आए थे  पल्लव कौन थे और कहा से आए , इस संबंध में काफी विवाद हैं| क्युकी दक्षिण भारत की परंपरागत शक्तियों में चेर , चोल और पाण्ड्य का नाम आता हैं , इसलिए कुछ लोग पल्लवों को विदेशी मानते हैं और ऐसे लोगों का विश्वास हैं की ये लोग पार्थिव की शाखा थे| दूसरा सिद्धांत ये हैं की वे सुदूर दक्षिण के आदिवासी थे और कुरुंब , कल्लर तथा अन्य हिंसक जातियों से उनका संबंध था| इन लोगों को संगठित कर पल्लवों ने अपने आपको शक्तिशाकी बनाया था| संगम साहित्य में पल्लवों को तोनडेयर कहा गया हैं| कृषणस्वामी आयंगर के अनुसार वे लोग उन नाग राजाओ के वंशज थे , जो सातवाहनों के सामंत थे|  भूतपूर्व सातवाहनों के दक्षिण पूर्व में पल्लवों ने अपनी राजधानी कांचीपुरम में बनाई| विदेशी पल्लव से उनकी तुलना की जा सकती हैं| इस संबंध में कहा जाता हैं की जब नंदिवर्माण द्वितीय सिंहासन पर बैठा तब उसे हाथी के आकार का ताज दिया गया , जो डैमेट्रियस के ताज की याद दिलाता हैं| ऐसा भी कहा जाता हैं की पल्लव पहले उत्तर के निवासी थे जो बहुत पहले दक्षिण में जाकर बस गए और जिन्होंने दक्षिण की परम्पराओ को अपना लिया...

जानिए मगध का स्वर्णिम इतिहास

 जानिए मगध का स्वर्णिम इतिहास  आज इस लेख में हम आपको मगध के इतिहास के बारे में बताएंगे| मगध को वैदिक साहित्य में अपवित्र स्थान माना गया हैं| इसका कारण ये था कि आर्यों के सांस्कृतिक प्रभाव से मगध काफी दिनों तक दूर रहा था| मगध के निवासियों को लोग पतित कहा करते थे| ये आर्य थे या अनार्य ये कहना संभव नहीं हैं , परंतु इतना निश्चित हैं कि ये लोग वेदसमपत सभ्यता को स्वीकार नहीं करते थे| छठी शताब्दी पूर्व मगध में बाहर्दरथवंश का राज था और इसकी राजधानी राजग्रह में थी| ब्रहदरथ का पुत्र जरासंध बहुत शक्तिशाली शासक था| इस वंश का अंत कब और केसे हुआ इसके बारे में इतिहास में कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता| बुद्ध के समय इस राज्य में बिंबिसार शासन कर रहा था| इसके वंश और समय को लेकर इतिहासकारों में काफी मतभेद था| बिंबिसार  बिंबिसार एक सामान्य सामंत भट्टीय का पुत्र था| प्रारंभ में उसकी राजधानी गिरिव्राज में थी , परंतु बाद में उसने राजग्रह को अपनी राजधानी बनाया| वह एक कुशल राजनीतज्ञ था| उस समय साम्राज्य विस्तार का जो प्रयास चल रहा था उससे अलग रहना बिंबिसार जैसे महत्वाकांक्षी शासक के लिए असं...

भारत में अरब आक्रमण का इतिहास

 भारत में अरब आक्रमण का इतिहास  आज के इस ब्लॉग में हम आपको अरब आक्रमण का इतिहास बताएंगे| सबसे पहले हम आपको इस्लाम का प्रारम्भिक रूप बताएंगे|  भारत में जिस समय गुप्त साम्राज्य का पतन हो रहा था और भारत कि केन्द्रीय सत्ता कमजोर हो रही थी , उस समय इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हज़रत मोहम्मद का जन्म 571 ईस्वी में अरब कुरेश जाति में हुआ| उनके पूर्व अरब निवासी जड़ - जन्तुओ को पूजते थे और कई छोटे - छोटे फिरकों में बटे हुए थे| इस्लाम कि उत्पति इसी अरब भूमि में हुई थी| 622 ईस्वी में मोहम्मद आत्मरक्षा के लिए मक्का से मदीना गए और अपने विरोधियों का दमन करने के लिए वह उन्होंने सेना तैयार की| थोड़े ही दिनों में उन्होंने सारे अरब पर अधिकार जमा लिया| उन्होंने अरबों को एकता के सूत्र में बांध दिया और उन्हे एक धर्म के जोश से भर दिया| उसके अनुसार ईश्वर एक हैं और मोहम्मद उसका पैगंबर हैं| इस धर्म को मानने वाले पाँच सिद्धांतों का पालन करते हैं :- 1 कलमा पढ़ना  ( कि ईश्वर एक हैं ) 2 नमाज़ पढ़ना  3 रमज़ान के महीने में रोजा रखना  4 जकात ( अपनी आय का ढाई प्रतिशत दान में देना ) 5 हज करना |  मो...

जानिए कश्मीर का स्वर्णिम इतिहास

         जानिए कश्मीर का स्वर्णिम इतिहास      आज के इस लेख में हम कश्मीर के स्वर्णिम इतिहास के बारे में जानेंगे| कश्मीर के इतिहास के अध्ययन के लिए यों तो बहुत सारे साधन उपलब्ध हैं , परंतु सर्वप्रमुख साधन राजतरंगिनी हैं| सम्राट अशोक के समय कश्मीर मौर्य साम्राज्य का एक भाग था| अशोक ने अनेक शहरों को बसाया था और श्रीनगर शहर को बसाया था| हुएनसांग के अनुसार अशोक ने सार कश्मीर बोधसङ्घ को दान कर दिया था| उसकी मौत के बाद उसका पुत्र जालोक कश्मीर मरीन स्वतंत्र शासक हो गया| उसके बाद बहुत समय तक कश्मीर का इतिहास अंधकारमय ही रहा| बड़े - बड़े साम्राज्यों के होते हुए भी ये उन साम्राज्यों कि धारा से अलग रहा| यहाँ कुषाण राजाओ ने शासन किया और फिर हुन शासक मिहिरकुल ने भारत के गुप्त साम्राज्य से पराजित होने के बाद यह अपना राज्य कायम किया था| मुद्राओ से पता चलता हैं कि वह एक शैवधर्मी था| उज्जैन के राजा हर्ष विकर्मदित्य के फलस्वरूप हूणों के राज्य का अंत हो गया| उसने हूणों कि राजगद्दी पर कवि मात्रगुप्त को बिठा दिया , किन्तु प्रवर्सेन द्वितीय ने उसे तुरंत निकाल दिया| कुछ इत...

परमार वंश का इतिहास

परमार वंश का इतिहास   आज के इस हम परमार वंश के बारे में जानेंगे| मालवा के परमार वंश ने नौवी शताब्दी से गराहवी शताब्दी तक शासन किया और उस समय की राजनीति में सक्रिय भाग लिया| राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से परमार वंश इतिहास का बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया हैं| कुछ लोग इन्हे राष्ट्रकूटो का वंशज मानते हैं| अग्निकुल के राजपूतों  में परमार प्रमुख हैं| इस शाखा का आदिपुरष परमार था , लेकिन राजनीतिक शक्ति के रूप में इस वंश का संस्थापक उपेन्द्र अथवा कृष्णराज था| वह राष्ट्रकूटो का सामंत था|    सीयक हर्ष इस वंश का पहला एतिहासिक शासक सीयक हर्ष था| उसे श्रीहर्ष भी कहा जाता था| वह प्रथम स्वतंत्र और शक्तिशाली शासक था| उसका संघर्ष मानयखेट के राष्ट्रकूटो से हुआ| उसने खोहिग नामक राष्ट्रकूट शासक को पराजित कर विपुल सम्पति प्राप्त कि थी| उसने राजस्थान के हुन वंश को युद्ध में पराजित किया| इस हुन नरपति का नाम रदुपाती था| सीयक हर्ष एक महान सेनानी और योद्धा था|  वाक्पतिमुनज़् हर्ष का उतराधिकारी वाक्पतिमुनज़् था| मालवा के परमारों को शक्ति का उत्कर्ष उसी के समय में हुआ था| एक साहित्यक...

सनातन धर्म की पुनः स्थापना करने वाले शासक पुषयमित्र शुंग का इतिहास

सनातन धर्म की पुनः स्थापना करने वाले शासक पुषयमित्र शुंग का इतिहास   आज के इस लेख में हम जानेंगे पुषयमित्र शुंग के बारे में, जो कि मौर्यो के बाद भारत का एक शक्तिशाली शासक था| जिसने पूरे उत्तरी भारत पर राज किया था| पुषयमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य सम्राट ब्रहदरथ को मारकर शुंगवंश कि स्थापना की| इस बात का उल्लेख पुराणों में भी मिलता हैं| बाणभट ने भी इस बात का उल्लेख हरश्चरित में किया हैं| कहा जाता हैं कि जब ब्रहदरथ अपनी सेना का निरीक्षण कर रहा था तब पुषयमित्र ने उसका वध कर दिया था|  मौर्य साम्राज्य के बाद केंद्र में स्तिथि बहुत ज्यादा खराब हो गई थी| जिसके के बाद पुषयमित्र ने सत्ता संभाली थी| पुषयमित्र के काल को ब्राह्मण पुनः स्थापना काल भी कहा जाता हैं , क्युकी मौर्य साम्राज्य में बोद्धों का बहुत ज्यादा विस्तार हो गया था , जिसके कारण उत्तरी भारत में सनातन धर्म को मानने वालों कि संख्या बहुत कम रह गई थी| उस समय देश पर विदेशी शासन का खतरा भी मंडरा रहा था| और ये आक्रमण भी बहुत बढ़ गए थे|  शुंग कौन थे ? :- सबसे पहले तो मैं आपको ये बताऊँगा कि शुग कौन थे ? शुंग लोग असल में ब्राह्...

प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों कि पूरी जानकारी |

 प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों का इतिहास  आज के इस लेख में हम आपको प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों के बारे में बताएंगे| आपने भी महाभारत या रामायण में इन महाजनपदों के बारे में सुना होगा| महाभारत के पश्चात भी भारत अनेक राज्यों में बटा हुआ था| वेदिकाल में में आर्यों का राजनीतिक आधार जन था| इन जनपदों के बारे में बोदहग्रन्थों में भी लिखा हुआ हैं| इनमे अलग अलग राज्यों के होने का प्रमाण मिलता हैं| उसके आधार पर हम कह सकते हैं कि महाभारत के बाद भारत में केन्द्रीय सत्ता का अभाव था| छोटे छोटे जनपदों को मिलाकर बड़े महाजनपदों का निर्माण हुआ| इन सोलह महाजनपदों के नाम हैं :-   अंग,मगध, काशी ,कोशल , मल्ल , वज्जी , मोलि , कुरु,पांचाल ,मत्स्य ,सूरसेन , अस्मक , अवन्ती , गांधार , कंबोज , chedi |  बोधसाहित्य में कुछ गणराज्यों के उल्लेख ईद प्रकार हैं :-   कपिलवस्तु के शाक्य , रामगाम के भगय , अलकप के बुलि , केसपूत के कलाम , वैशाली के लिकछवि| इस युग को महाजनपदों का युग कहा जाता था| सोलह जनपदों कि आठ पड़ोसी जोड़िया गिनी जाती थी :-    अंग-मगध , काशी-कोशल , वज्जी-मल्ल , che...

कैसे हुआ था महाभारत के सबसे शक्तिशाली योद्धा का जन्म ?

कैसे हुआ था महाभारत के सबसे शक्तिशाली योद्धा का जन्म ? भीष्म  :-   भीष्म महाभारत के सबसे शक्तिशाली योद्धा थे l भीष्म का जन्म ही सबसे बड़ा रहस्य हैं  महाभारत के अनुसार कुरु के वंश में आगे चल कर शांतनु नाम के राजा होते हैं जो कि अपने समय के बहोत ही पराक्रमी राजा होते हैं  उनके राज्य बहोत ही दूर तक फैला था                                                      एक दिन राजा  शांतनु गंगा नदी के तट पर टहल रहे थे   तभी उन्होंने गंगा को देखा जो वही पर विचर रही थी गंगा को देखते ही शांतनु को गंगा से प्रेम हो गया  गंगा को भी शांतनु बहोत ही पसंद आते हैं    दोनों एक दूसरे से विवाह कर लेते हैं    लेकिन विवाह से पहले गंगा ने शांतनु से एक शर्त रही थी कि विवाह के बाद वो जहा भी जाना चाहे या कुछ भी करे शांतनु उन्हे रोकेंगे नहीं इस पर शांतनु मान गए विवाह के बाद गंगा को एक पुत्र होता हैं जिसे वे ले जाकर नदी में बहा...