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सनातन धर्म की पुनः स्थापना करने वाले शासक पुषयमित्र शुंग का इतिहास

सनातन धर्म की पुनः स्थापना करने वाले शासक पुषयमित्र शुंग का इतिहास 









 आज के इस लेख में हम जानेंगे पुषयमित्र शुंग के बारे में, जो कि मौर्यो के बाद भारत का एक शक्तिशाली शासक था| जिसने पूरे उत्तरी भारत पर राज किया था| पुषयमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य सम्राट ब्रहदरथ को मारकर शुंगवंश कि स्थापना की| इस बात का उल्लेख पुराणों में भी मिलता हैं| बाणभट ने भी इस बात का उल्लेख हरश्चरित में किया हैं| कहा जाता हैं कि जब ब्रहदरथ अपनी सेना का निरीक्षण कर रहा था तब पुषयमित्र ने उसका वध कर दिया था|  मौर्य साम्राज्य के बाद केंद्र में स्तिथि बहुत ज्यादा खराब हो गई थी| जिसके के बाद पुषयमित्र ने सत्ता संभाली थी| पुषयमित्र के काल को ब्राह्मण पुनः स्थापना काल भी कहा जाता हैं , क्युकी मौर्य साम्राज्य में बोद्धों का बहुत ज्यादा विस्तार हो गया था , जिसके कारण उत्तरी भारत में सनातन धर्म को मानने वालों कि संख्या बहुत कम रह गई थी| उस समय देश पर विदेशी शासन का खतरा भी मंडरा रहा था| और ये आक्रमण भी बहुत बढ़ गए थे| 










शुंग कौन थे ? :-



सबसे पहले तो मैं आपको ये बताऊँगा कि शुग कौन थे ? शुंग लोग असल में ब्राह्मण थे| पुराणों में भी पुषयमित्र को शुंग कहा गया हैं| हरश्चरित में भी शुंगवंश का प्रमाण मिलता हैं| कहा जाता हैं कि पतंजलि पुषयमित्र के राजपुरोहित थे| पतंजलि ने ब्राह्मण राज्य को सर्वोत्कृष्ट कहा हैं| पुषयमित्र को ब्रह्मणधर्म का कट्टर समर्थक कहा गया हैं और उसने बहुत से बोद्ध विहारों को नष्ट भी किया था| पुषयमित्र ने ब्राह्मण राज्य की पुनः स्थापना के लिए तलवार उठाई थी| 




शुंगवंश कि स्थापना :- 



 मौर्य वंश का अंत   लगभग 185 ईस्वी पूर्व में हुआ था| और इसी समय पुषयमित्र सिंहासन पर बेठा था| पुषयमित्र ने 30 वर्षों तक शासन किया था| पुराणों के अनुसार उसने 36 वर्षों तक शासन किया था| पुराणों में कहा गया हैं कि शुंगों ने 112 वर्षों तक शासन किया था| परंतु कुछ इतिहासकारों के अनुसार शुंगों ने लगभग 120 वर्षों तक शासन किया था| पुषयमित्र का सर्वमान्य काल 36 वर्षों का हैं| उसकी मौत 148 ईस्वी पूर्व में हुई थी| 



पुषयमित्र कि सफलताये :- 



पुषयमित्र सेनापति के नाम से विख्यात हुआ था| वह शुंगवंश का संस्थापक था| उसने अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए अश्वमेध यज्ञ किया था| उसने अपने अश्व कि रक्षा के लिए अपने पौत्र वसुमित्र के साथ कई राजाओ को भेज था| उसके शासनकाल कि सर्वप्रथम घटना थी विदर्भ से युद्ध| वहा का मौर्य अमात्य यज्ञासेन शुंगों का शत्रु था| ब्रहदरथ कि हत्या के बाद विदर्भ में उसने अपनी स्वतंत्र सत्ता कायम कर ली थी| पुषयमित्र के पुत्र और विदिशा के शासक अगनिमित्र ने बड़े ही कोशल से विदर्भ के साथ युद्ध किया| उसने यज्ञासेन के चचेरे भाई माधवसेन को अपनी और मिला लिया| और संघर्ष के बाद विदर्भ का राज्य दोनों भाईओ को बाँट दिया| इसके बाद पुषयमित्र कि सत्ता और भी शक्तिशाली हो गई| 




यवनों का आक्रमण :-



  उसके शासनकाल कि दूसरी महत्वपूर्ण घटना हैं यवनों का आक्रमण| पतंजलि के अनुसार यवनों ने अयोध्या पर आक्रमण किया और मद्यमिका पर भी आक्रमण किया| यवनों ने पांचाल , साकेत और मथुरा पर भी आक्रमण किया था| और उन्होंने पाटलिपुत्र पर भी आक्रमण किया था| अश्वमेध का अश्व घूमते-घूमते सिंधु के दक्षिणी तट पर पहुँच गया था , जिसे यवनों ने हासिल कर लिया था, जिसके बाद पुषयमित्र के पौत्र और यवनों के बीच युद्ध हुआ जिसमे पुषयमित्र का पौत्र विजियी हुआ| वसुमित्र ने 1000 सामंतों के साथ यवनों से युद्ध किया था| इस यवन आक्रमण का नेता कोन था , इसके  बारे में ठीक ठीक पता नही चलता हैं , कुछ लोग मीनांडर को इस आक्रमण का नेता मानते है तो कुछ लोग डएमेट्रियस को| ये दोनों बहुत बड़े योद्धा और विजेता थे| मीनांडर ही भारत में मिलिंद नाम से प्रसिद्ध हैं| कुछ लोग डएमेट्रियस को पुषयमित्र के समय का मानते हैं| सिंधुनदी पुषयमित्र के राज्य की सीमारेखा थी| कुछ इतिहासकारों के अनुसार पुषयमित्र के शासनकाल में दो बार यवनों के आक्रमण हुए थे, एक बार मीनांडर के नेतृव में और दूसरी बार डएमेट्रियस के नेतृव में| प्रथम बार पुषयमित्र के शासनकाल के आरंभ में और दूसरा उसके शासनकाल के अंत में हुआ था| 







. पुषयमित्र ने यूनानी सेना को पीछे धकेल दिया और अपनी विजय के उपलक्ष्य में अश्वमेध यज्ञ किया| दोनों ही विजयों के अवसर पर उसने अश्वमेध यज्ञ किया था| दूसरे अश्वमेध यज्ञ के समय स्वयं पतंजलि ने पुरोहित का काम किया था| उसके अश्वमेध यज्ञ का और भी महत्व था| एक तो यह मौर्य साम्राज्य के ध्वंस पर नए साम्राज्य के उत्थान को व्यक्त करता हैं , दूसरा इससे ब्राह्मण धर्म के नवीन आंदोलन का संकेत मिलता हैं| पुराणों के अनुसार राजा  जनमेजय के बाद पुषयमित्र ने ही अश्वमेध यज्ञ किया था| मध्य भारत को अपने अधीन कर लेने के उपरांत उन्होंने पक्षिम भारत को अपने अधीन करने का सोचा| तिब्बती इतिहासकार तारनाथ के आधार पर हम कह सकते हैं कि उनका राज्य पंजाब में जालंधर और सयालकोट पर भी था| पाटलिपुत्र उनके राज्य कि राजधानी बना था| इसके अनुसार अगर देखे तो पुषयमित्र का शासन पूरे उत्तर भारत और पंजाब और पूर्व में बंगाल तक था, और पूरे मध्य भारत में उनका राज्य था| पुराणों के अनुसार पुषयमित्र के आठों पुत्रों ने सम्मलीत रूप से शासन किया था| हो सकता हैं कि पुषयमित्र ने बाद में अपने शासन को आठ भागों में बाँट दिया हो| उसने विदिशा को अपनी दूसरी राजधानी बनाया था| पतंजलि के अनुसार एक सभा शासनकार्य में पुषयमित्र का हाथ बटाती थी| कालिदास के अनुसार नर्मदा के दक्षिणी राज्य भी उसके अधिकार में थे|



वह वैदिक और ब्राह्मण धर्म का समर्थक था| लेकिन वह बोधधर्म के प्रति उदार नहीं था| उसने साकल में हर एक बोद्ध भिक्षु के सर के लिए सोने की 100 मुहरे देने इनाम रखा| तिब्बती इतिहासकार तारनाथ भी उसके बोद्धविरोधी होने कि पुष्टि करता हैं और उसे बोद्धविहारों को नष्ट करने वाला बताया गया हैं| परंतु कुछ इतिहासकारों के अनुसार वो पूरी तरह से बोद्धों के विरुद्ध नहीं था| विदिशा के निकट भरहुत में उसने अनेक बोधस्तूपों का निर्माण करवाया था| यह उसकी धार्मिक उदारता का नतीजा था| भरहुत के एक शिलालेख में लिखा भी हुआ हैं कि ये स्तूप शुंगों के राज्य में थे| ये बात सही हैं कि वह ब्राह्मणों का संगरक्षक था, किन्तु बोद्धों के साथ भी वह बहुत प्रेम व्वयहार प्रगट करता था| जिसके प्रमाण भी मिलते हैं|



' पुषयमित्र भारत के महान शासकों मे से एक था| उसने भारत कि सेवा उस समय कि थी जब भारत पर यवनों का निरंतर आक्रमण हो रहा था| यवनों ने कुछ प्रदेशों पर अधिकार भी कर लिया था| उन्होंने यवनों के प्रभाव से भारत देश को मुक्त कराया| ब्राह्मणवादी होने बावजूद भी वह एक उदार शासक था| वह उच्च कोटि का सेनानायक था| और अपने योग्यता के बाल पर उन्होंने एक नए राजवंश शुंग राजवंश कि नीव रखी| उसके राज्य कि न्यायववस्था केसी थी इसके बारे में कोई लेख अभी तक प्राप्त नहीं हुआ हैं| लेकिन वह एक कुशल सेनानायक और योद्धा जरूर थे| 



पुषयमित्र के उत्तराधिकारी :-   



148 ईस्वी पूर्व में उसकी मौत हो गई थी| अगनिमित्र उनका उत्तराधिकारी हुआ था| वसुमित्र अगनिमित्र का पुत्र था , और उसने अपने पितामह के समय यवनों को सिंधुतट पर हराया था| फिर वसुमित्र का इसके बाद क्या हुआ , इसके बारे में कुछ भी कहना कठिन हैं, क्युकी उसके बाद इतिहास में उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती हैं| इस वंश का अंतिम शासक देवभूति था| वह बड़ा विलासी और अयोग्य शासक था| उसके मंत्री वसुदेव कण्व ने उसका वध करवा दिया| और इसके बाद कण्व वंश का उत्थान हुआ| तो ये था हमारा आज का लेख पुषयमित्र शुंग के ऊपर आपको ये लेख कैसा लगा मुझे कमेन्ट बॉक्स में बताए| धन्यवाद | 

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