सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Disclaimer

Disclaimer for Knowledge book stories

If you require any more information or have any questions about our site's disclaimer, please feel free to contact us by email at saxsenavishal959@gmail.com. Our Disclaimer was generated with the help of the Free Disclaimer Generator.

Disclaimers for Knowledge book stories

All the information on this website - https://knowledgebookstories.blogspot.com/ - is published in good faith and for general information purpose only. Knowledge book stories does not make any warranties about the completeness, reliability and accuracy of this information. Any action you take upon the information you find on this website (Knowledge book stories ), is strictly at your own risk. Knowledge book stories will not be liable for any losses and/or damages in connection with the use of our website.

From our website, you can visit other websites by following hyperlinks to such external sites. While we strive to provide only quality links to useful and ethical websites, we have no control over the content and nature of these sites. These links to other websites do not imply a recommendation for all the content found on these sites. Site owners and content may change without notice and may occur before we have the opportunity to remove a link which may have gone 'bad'.

Please be also aware that when you leave our website, other sites may have different privacy policies and terms which are beyond our control. Please be sure to check the Privacy Policies of these sites as well as their "Terms of Service" before engaging in any business or uploading any information.

Consent

By using our website, you hereby consent to our disclaimer and agree to its terms.

Update

Should we update, amend or make any changes to this document, those changes will be prominently posted here.

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जानिए किस कारण से सिक्खों के पाँचवे गुरु अर्जुन देव जी को शहीदी मिली |

जानिए किस कारण से सिक्खों के पाँचवे गुरु अर्जुन देव जी को शहीदी मिली |     गुरु रामदास जी के बाद उनके सबसे छोटे पुत्र गुरु अर्जुन देव जी गुरु गद्दी पर बैठे| क्युकी गुरु रामदास जी के सब पुत्रों में से केवल गुरु अर्जुन देव जी ही सबसे योग्य थे| गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1563 ईस्वी को गोइंदवाल में हुआ था| उनके पिता गुरु रामदास जी सोढ़ी जाति के खत्री थे| उनकी माता का नाम बीबी भानी था| वह बहुत ही धार्मिक विचारों वाली स्त्री थी उनके ही भक्ति का प्रभाव गुरु अर्जुन देव पर भी पड़ा|  ऐसा माना जाता हैं कि गुरु अर्जुन देव जी बचपन से ही बहुत ही बुद्धिमान बालक थे| वे अपने माता पिता का बहुत सत्कार करते थे| उन्होंने भाई बुड्डा जी से गुरमुखि लिपि सीखी| उन्होंने हिन्दी , फारसी और संस्कृत का भी ज्ञान सीखा|  गुरु अर्जुन देव जी ने अपने बचपन के पहले 11 वर्ष गोइंदवाल में ही बिताएँ| उसके बाद वो अपने पिता के साथ अमृतसर चले गए थे| गुरु अर्जुन देव जी की पत्नी का नाम गंगा देवी था , जो कि फिल्लौर निवासी कृष्ण चंद की पुत्री थी| बहुत सालों तक गुरु अर्जुन देव जी के घर कोई संतान नहीं हु...

जानिए सिक्खों के सबसे कम उम्र के गुरु हरकृष्ण जी का इतिहास|

 सिक्खों के आठवें गुरु हरकृष्ण जी का इतिहास | History of guru harkrishna ji  गुरु हरराय जी के देहांत के बाद गुरु हरकृष्ण जी सिक्खों के आठवे गुरु बने| जब वे गुरु बने तब उनकी उम्र मात्र 5 वर्ष की थी|  उनका जन्म 7 जुलाई 1656 ईस्वी को कीरतपुर में हुआ था| उनके पिता का नाम गुरु हरराय था और माता का नाम सुलखनी देवी था| हमने अपने पिछले ब्लॉग में बताया हैं कि गुरु हरराय जी अपने बड़े पुत्र रामराय के ववहार से दुखी से इसलिए उन्होंने अपने छोटे पुत्र को अपना उत्तराधिकारी बनाया था| सिक्ख इतिहास में उन्हे बाल गुरु कहा जाता हैं क्युकी वो पाँच वर्ष की आयु में गुरु बने थे| कहा जाता हैं उस आयु में भी उनमें असाधारण योग्ता और आध्यात्मिक शक्ति विद्यमान थी|  रामराय अपने छोटे भाई का गुरु गद्दी पर बैठना सहन नहीं कर सका| गुरु हरराय का बड़ा पुत्र होने के नाते वो गुरु गद्दी पर अपना हक समझता था| उसने बहुत से स्वार्थी मसंदों के साथ साठ गाठ करली और अपने आपको गुरु घोषित कर लिया| लेकिन सिक्खों ने रामराय को गुरु मानने से इनकार कर दिया| रामराय अब दिल्ली चला गया और औरंगजेब के पास गुरु हरकृष्ण के विरुद्ध शि...

आखिर पल्लव कौन थे और कहाँ से आए थे

आखिर पल्लव कौन थे और कहाँ से आए थे  पल्लव कौन थे और कहा से आए , इस संबंध में काफी विवाद हैं| क्युकी दक्षिण भारत की परंपरागत शक्तियों में चेर , चोल और पाण्ड्य का नाम आता हैं , इसलिए कुछ लोग पल्लवों को विदेशी मानते हैं और ऐसे लोगों का विश्वास हैं की ये लोग पार्थिव की शाखा थे| दूसरा सिद्धांत ये हैं की वे सुदूर दक्षिण के आदिवासी थे और कुरुंब , कल्लर तथा अन्य हिंसक जातियों से उनका संबंध था| इन लोगों को संगठित कर पल्लवों ने अपने आपको शक्तिशाकी बनाया था| संगम साहित्य में पल्लवों को तोनडेयर कहा गया हैं| कृषणस्वामी आयंगर के अनुसार वे लोग उन नाग राजाओ के वंशज थे , जो सातवाहनों के सामंत थे|  भूतपूर्व सातवाहनों के दक्षिण पूर्व में पल्लवों ने अपनी राजधानी कांचीपुरम में बनाई| विदेशी पल्लव से उनकी तुलना की जा सकती हैं| इस संबंध में कहा जाता हैं की जब नंदिवर्माण द्वितीय सिंहासन पर बैठा तब उसे हाथी के आकार का ताज दिया गया , जो डैमेट्रियस के ताज की याद दिलाता हैं| ऐसा भी कहा जाता हैं की पल्लव पहले उत्तर के निवासी थे जो बहुत पहले दक्षिण में जाकर बस गए और जिन्होंने दक्षिण की परम्पराओ को अपना लिया...