दक्षिण के आंध्र भोज कहे जाने वाले महान कृष्णदेव राय का इतिहास
आप में से बहुत से लोगों ने कृष्ण देव राय के बारे में तो जरूर सुना होगा और बहुत से लोगों ने तो कृष्ण देव राय के ऊपर बनी टीवी सीरीअल तेनाली रामा को भी देखा होगा | आज के इस लेख में आप कृष्ण देव राय का इतिहास जानोगे | कृष्ण देव राय तुलुव वंश का शासक था | इस वंश का संस्थापक वीर नरसिंह था | उसने 1505 ईस्वी से 1509 ईस्वी तक शासन किया था | इससे पहले उसने तुलुव वंश के राजा का वध करवा दिया था और इस वजह से बहुत से सरदार उसके खिलाफ हो गए | वीर नरसिंह ने अधिकतर सरदारों के विद्रोह को दबा दिया | कहा जाता हैं कि उसके प्रयासों से सभी जातियों और धर्मों में वीरता की भावनाएँ उत्पन्न हो गई और समाज में कायरता को घृणा की दृष्टि से देखा जाने लगा |
कृष्णदेव राय 1509 - 1529 ईस्वी
वीर नरसिंह के देहांत के बाद उसका सौतेला भाई कृष्ण देव राय गद्दी पर बैठा | उसकी ताजपोशी की रस्म श्रीकृष्ण जयंती के दिन हुई थी | वह विजयनगर साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली सम्राट था |
जब कृष्ण देव राय राजगद्दी पर बैठा तो उस समय विजयनगर साम्राज्य की अवस्था बहुत खराब थी | वीर नरसिंह बहुत से सरदारों का विद्रोह दमन करने में असफल रहा था | साम्राज्य के उत्तर पूर्वी हिस्से पर यानि कि उड़ीसा में गजपति का अधिकार हो गया था | विजयनगर साम्राज्य को मुस्लिम प्रांतों की और से भी खतरा था | उत्तर की तरफ से विजयनगर साम्राज्य को विशेष रूप से बीजापुर के सुल्तान के आक्रमणों का खतरा था | लेकिन कृष्ण देव राय एक वीर योद्धा और योग्य सेनानायक था | उसने अपने शासनकाल के 20 वर्षों में साम्राज्य के सभी शत्रुओ के विरुद्ध सफलता हासिल कर ली थी और उसने एक कुशल शासन व्यवस्था की स्थापना की |
विजयें
कृष्ण देव राय शूरवीर योद्धा था जो सैनिकों का संगठन करने और युद्धों में उनका नेतृत्व करने में अत्यंत निपुण था |
1509 ईस्वी में जब बहमनी सुल्तान महमूदशाह ने विशाल सेना सहित विजयनगर साम्राज्य के विरुद्ध प्रस्थान किया तो कृष्णदेव राय ने साम्राज्य की सीमा पर शत्रुओ का विरोध किया और बुरी तरह से पराजित किया | इसके बाद उसने शत्रुओ का पीछा किया और उन्हे बुरी तरह से हरा दिया | इस लड़ाई में बीजापुर राज्य का संस्थापक आदिल खां मारा गया |
1512 ईस्वी में कृष्ण देव राय ने रायचूर को विजय कर लिया | इसके दो और लड़ाइओ में शत्रुओ को पराजित करके गुलबर्गा और बीदर पर अधिकार कर लिया | लेकिन इन युद्धों के बाद उन्होंने सुल्तान महमूद शाह को उनके खोए हुए बहुत से प्रदेश उन्हे वापस कर दिए |
1513 ईस्वी में कृष्णदेव राय ने उदयगिरी के दुर्ग पर आक्रमण कर दिया | गजपति प्रतापरुद्र द्वारा भेजी गई सेना को बुरी तरह हर दिया गया जब कृष्णदेव ने कटक पर आक्रमण किया तो विवश होकर गजपति को 1518 ईस्वी में कृष्णदेव राय से संधि कर ली | इस संधि की शर्तों के अनुसार गजपति ने अपनी पुत्री का विवाह कृष्णदेवराय से कर दिया | और बदले में कृष्णदेव राय ने कृष्ण नदी के उत्तर में सतिथ सारे प्रदेश गजपति को लौटा दिए |
उड़ीसा के शासक से निपटने के बाद कृष्णदेव को गोलकुंडा के सुल्तान कुली कुतुब शाह के विरुद्ध सेना भेजनी पड़ी क्युकी उसने विजयनगर के बहुत से प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था | कुतुबशाही सेना को बंदी बनाया गया और उसके बहुत से अधिकारियों को बंदी बनाकर विजयनगर लाया गया |
एक बुद्धिमान शासक की तरह कृष्णदेव राय ने पुतगालिओ के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किये | पूर्तगालिओ ने अरबी और ईरानी घोड़ों के व्यापार का एकाधिकार प्राप्त कर लिया था और कृष्णदेव राय अपनी घुड़सवार सेना के लिए उनसे घोड़े प्राप्त करना चाहता था | पुर्तगाली भी कृष्णदेवराय के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करना चाहते थे क्युकी वे उनके साम्राज्य में व्यापार करने की सुविधा प्राप्त करना चाहते थे | इस मित्रता से दोनों को लाभ हुआ |
कहते हैं कि कृष्ण देव राय एक बहुत ही कुशल शासन प्रबंधक था | उसने अपने राज्य में बहुत ही योग्य अधिकारी भर्ती किये थे | वो खुद राज्य में घुमा करता था और लोगों की शिकायतों को सुना करता था | उसने अपनी सेना का निर्माण भी बहुत कुशल तरीके से किया हुआ था | कृष्णदेव राय ने अपने राज्य में खेती के लिए बहुत सी नहरों और तालाबों का निर्माण करवाया था | कृष्णदेव राय ने अपने शासन कल में बहुत से सुन्दर भवन और मूर्तियों का निर्माण करवाया था | वह दक्षिण में आंध्र भोज के नाम से प्रसिद्ध हैं |
कृष्णदेव राय के देहांत के बाद उसका भाई अच्युकत गद्दी पर बैठा | वह एक दुबल शासक था और उसके बाद बहुत से राजा विजयनगर की बहुत पर बैठे थे | उनका इतिहास मैं आपको किसी और ब्लॉग में बताऊँगा , आज आपको मैंने कृष्ण देव राय के इतिहास की जानकारी दी हैं
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