मुहम्मद गौरी का इतिहास | History of muhmmad gauri
मुहम्मद गौरी भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना करने वाला पहला शासक था| उससे पहले महमूद गजनवी ने भारत में सिर्फ धन और मूर्ति पूजा को नष्ट करने के उद्देश्य से भारत पर बार बार आक्रमण किये , लेकिन मुहम्मद गौरी ने भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने के उद्देश्य से आक्रमण किये| मुहम्मद गौरी गौड़ का शासक था| मुहम्मद गौरी ने 1175 ईस्वी से भारत पर आक्रमण करने शुरू किये और 1205 ईस्वी तक उसने और उसके दास सेनानायकों ने सारे उत्तरी भारत पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया|
1 मुल्तान की विजय 1175 ईस्वी
मुहम्मद गौरी से सबसे मुल्तान पर आक्रमण करण का निश्चय किया| क्युकी मुल्तान भारत के रास्ते में पड़ता था| मुल्तान पर करमाथी कबीले का शासन था जो कि शिया मत को मानते थे| मुहम्मद गौरी ने अपनी सेना सहित मुल्तान पर आक्रमण कर दिया और मुल्तान को बड़ी ही आसानी से जीत लिया| मुल्तान पर करमाथियों का शासन हमेशा के लिए समाप्त हो गया|
2 उच्च पर अधिकार 1176 ईस्वी
मुल्तान की विजय के पश्चात मुहम्मद गौरी ने सिंध के ऊपरी भाग में सतिथ उच्च के दुर्ग की तरफ बढ़ा|कहा जाता हैं कि उस समय उच्च में भट्टी राजपूत राजा राज्य करता था| मुहम्मद गौरी ने इस पर अधिकार करने के लिए एक चाल से काम लिया| उसने भट्टी राजा की पत्नी को ये लालच दिया कि अगर वो राजा की हत्या कर दे तो वो उसकी पुत्री को अपनी पटरानी बना लेगा| भट्टी ने ऐसा ही किया लेकिन मुहम्मद ने अपने वचन को पूरा नहीं किया उसने रानी और उसकी पुत्री को कैद कर लिया|
3 गुजरात पर आक्रमण 1178 ईस्वी
मुहम्मद गौरी ने अब गुजरात में चालुक्य राज्य पर आक्रमण करने का सोचा| गुजरात एक धनी और महत्वपूर्ण राज्य था , जिसकी राजधानी अनहिलवाड़ा थी| मुहम्मद गौरी की सेना ने विशाल रेगिस्तान को पार करते हुए गुजरात पहुचे ,जहां गुजरात के शासक मूलराज द्वितीय की सेना उनका मुकाबला करने के लिए खड़ी थी| मुहम्मद गौरी की सेना बहुत थकी हुई थी और उनमें मूलराज की सेना से लड़ने का साहस नहीं था| इस कारण से मुहम्मद गौरी के बहुत सैनिक युद्ध क्षेत्र में मारे गए और वे सभी वापस चले गए|
4 पंजाब की विजय 1186 ईस्वी
अब मुहम्मद गौरी ने पंजाब पर अधिकार करने का सोचा| उस समय पंजाब पर मुहम्मद गजनवी के वंशज खुसरो मलिक का शासन था| 1179 ईस्वी में मुहम्मद गौरी ने खैबर दर्रे को पार करके पेशवार पर आक्रमण कर दिया और बिना किसी विरोध के इस पर अधिकार कर लिया| 1181 ईस्वी में मुहम्मद गौरी ने खुसरो मलिक के विरुद्ध कारवाही करने के लिए निकला| 1185 ईस्वी में मुहम्मद गौरी ने सयालकोट पर अधिकार कर लिया और वहाँ एक शक्तिशाली दुर्ग का निर्माण किया| खुसरो मलिक सयालकोट के शक्तिशाली दुर्ग को अपने राज्य के लिए खतरा समझता था| इसलिए उसने खोखर कबीले की सहायता से दुर्ग पर आक्रमण किया लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली| इस समय खुसरो मलिक का जम्मू के शासक चकरदेव से झगड़ा हो गया| चकरदेव ने मुहम्मद गौरी को लाहौर पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया और उसकी सहायता करने का भी वचन दिया| 1186 ईस्वी में मुहम्मद गौरी ने लाहौर पर आक्रमण कर दिया और चकरदेव की सेना ने भी उसका साथ दिया , लेकिन फिर भी खुसरो मलिक को हराया ना जा सका| इस समय मुहम्मद गौरी ने छल कपट से काम लिया| उसने खुसरो मलिक को सुरक्षा का आश्वासन देकर उससे मित्रता स्थापित करने के बहाने शिविर में बुलाया और धोखे से बंदी बना लिया| इस प्रकार लाहौर समेत सारे पंजाब पर मुहम्मद गौरी का अधिकार हो गया|
5 तराईन की पहली लड़ाई 1191 ईस्वी
राजपूत राज्यों से युद्ध करने से पूर्व मुहम्मद गौरी ने सिंध और पंजाब में अपनी शक्ति को मजबूत किया| उसने सबसे पहले दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान से लड़ने का निश्चय किया , जिसे मुस्लिम इतिहासकार राय पिथौरा भी कहते हैं| पृथ्वीराज चौहान एक शूरवीर और शक्तिशाली राजपूत शासक था जिसका अजमेर और दिल्ली पर अधिकार था| कुछ इतिहासकारों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के बीच सात बार युद्ध हुए थे , लेकिन ज्यादातर इतिहासकार के अनुसार इनके बीच केवल दो बार ही युद्ध हुआ था| कहा जाता हैं कि पृथ्वीराज चौहान के सैनिकों की संख्या लगभग 1 लाख थी , और मुहम्मद गौरी ने लगभग 50000 सैनिकों के साथ सरहिन्द की तरफ से कूच किया| 1191 ईस्वी में तराईन नामक स्थान पर दोनों सेनाओ में घमासान युद्ध हुआ| इस लड़ाई में राजपूतों ने अपनी असाधारण वीरता और साहस के जौहर दिखाएँ| इस युद्ध के दौरान पृथ्वीराज चौहान के भाई गोबिन्द राय पर मुहम्मद गौरी ने वार किया और उसके दो दांत तोड़ दिए| इस पर गोबिन्द गोबिन्दराय ने अपनी तलवार से मुहम्मद गौरी पर जोरदार हमला किया और उसे घायल कर दिया| वह घोड़े से गिरने ही वाला था कि उसके एक सैनिक ने उसे संभाला और युद्ध क्षेत्र से उसके सैनिक भाग गए| मुहम्मद गौरी के युद्ध क्षेत्र से भाग जाने के कारण उसके सैनिकों में भगदड़ मच गई| राजपूतों ने भागते हुए तुर्कों का पीछा किया और उनमें से बहुत से सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया| इस लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को शानदार विजय मिली|
6 तराईन की दूसरी लड़ाई 1192 ईस्वी
तराईन के पहले युद्ध में हुई हार के कारण मुहम्मद गौरी को बहुत दुख हुआ और उसने इस अपमानजनक हार का बदला लेने के लिए अपने राज्य गजनी में पहुच कर दिन रात सैनिक तैयारिया करने लगा| उसने 120000 सैनिकों विशाल सेना जमा की| मुहम्मद गौरी अपनी सेना के साथ 1192 ईस्वी में गजनी से निकल पड़ा| उधर पृथ्वीराज चौहान ने भी शत्रुओ से लड़ने ले लिए पूरी तैयारी कर ली| कहा जाता हैं कि कन्नौज के राजा जयचंद को छोड़कर भारत के सभी राजपूतों ने पृथ्वीराज चौहान सेना भेजी| तराईन नामक स्थान पर घमासान युद्ध हुआ| मुहम्मद गौरी ने अपनी सेना को चार टुकड़ियों में बाँट दिया| दाये , बाये , केंद्र और आगे लड़ने के लिए खड़ा कर दिया| इन चार टुकड़ियों के पीछे 12000 की रिजर्व सेना रख दी गई , जिसकी कमान खुद मुहम्मद गौरी ने संभाली| राजपूतों ने मुसलमानों की चारों टुकड़ियों पर धावा बोल दिया और राजपूतों ने अद्भुत वीरता का प्रमाण देते हुए शत्रुओ का प्रबल विरोध किया| मुहम्मद गौरी ने यह अनुभव करते हुए कि शूरवीर राजपूतों को इस प्रकार हराना कठिन होगा , एक चाल से काम लिया| उसने अपनी चारों सैनिक टुकड़ियों को कुछ समय लड़ने के बाद पीछे हट जाने का आदेश दिया जैसे मानो वे हार गए हो| जब राजपूतों से भागते हुए सैनिकों का पीछा किया तो तुर्क सेनाओ ने अचानक से पीछे मुड़ कर तुर्क सेनाओ पर आक्रमण कर दिया और हजारों राजपूतों को मौत कर घाट उतार दिया| पृथ्वीराज चौहान के भाई गोबिन्द राय ने भी इस युद्ध में असाधारण वीरता का प्रदर्शन दिया| लेकिन इस युद्ध में वो भी मारा गया| उसके बाद पृथ्वीराज चौहान हाथी से नीचे उतर आया और उसने तुर्क सेनाओ का सामना किया , लेकिन तुर्क सेनाओ से उसे मौत के घाट उतार दिया| लेकिन कुछ इतिहासकारों के अनुसार मुहम्मद गौरी ने उसे अपने साथ गजनी ले गया और वहाँ उसे मौत के घाट उतार दिया गया|
7 कन्नौज के शासक जयचंद के विरुद्ध अभियान 1194 ईस्वी
1194 ईस्वी में मुहम्मद गौरी ने कन्नौज के शासक जयचंद के विरुद्ध कारवाही करने का सोचा| जयचंद ने तराईन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान का साथ देने से इनकार कर दिया था| अब वह मुहम्मद गौरी की महत्वाकांक्षा का निशाना बना| गौरी 50000 सैनिकों सहित गजनी से निकला| जयचंद ने भी शत्रुओ का सामना करने के लिए अपनी सैनिक तैयारी कर ली थी| इटावा और चांदवाड नामक स्थान पर दोनों सेनाओ में घमासान युद्ध हुआ| आरंभ में राजपूतों का पलड़ा भारी रहा और उन्होंने बहुत अधिक संख्या में तुर्कों को मौत के घाट उतार दिया| लेकिन शत्रु द्वारा छोड़ा गया एक तीर जयचंद की आँख में जा लगा और वह घायल अवस्था में हाथी से नीचे जा गिरा और उसकी मौत हो गई| इससे उसकी सेना में भगदड़ मच गई और तुर्कों ने भागते हुए सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया| इस युद्ध में तुर्कों की शानदार विजय हुई|
इसके बाद तुर्कों ने बियाना , ग्वालियर और अनहिलवाड़ा को जीता| और आगे बढ़ते हुए पूरे उत्तर भारत पर धीरे धीरे करके अधिकार कर लिया| मुहम्मद गौरी ने अपने सेनानायक बख्तियार खिलजी को बिहार को जीतने के लिए भेज दिया| बख्तियार खिलजी ने बिहार और पूर्वी भारत को जीता| उसने बंगाल को भी अपने अधिकार में करते हुए उत्तरी भारत के भी कुछ प्रदेशों को जीता| 1204 ईस्वी में मुहम्मद गौरी ने उत्तर पक्षिमी पंजाब के खोंखरों के विरुद्ध कारवाही करने का निश्चय किया , क्युकी खोंखरों ने उत्तरी पक्षिमी पंजाब में उत्पात मचाया हुआ था| मुहम्मद गौरी ने खोंखरों के विरुद्ध आक्रमण करके उन्हे बहुत बड़ी हानी पहुचाई| बहुत से खोंखरों की इस युद्ध में जान गई| और बहुतों को एशिया के बज़ारों में बेच दिया गया|
1206 ईस्वी में मुहम्मद गौरी की मौत हो गई थी , उसकी मौत के संबंध में इतिहासकारों के अलग अलग विचार हैं| कुछ के अनुसार मुहम्मद गौरी जब खोंखरों का दमन करके गजनी वापस जा रहा था तो मार्ग में शाम के समय उसने एक स्थान पर रुककर नमाज़ पढ़ा उसी समय कुछ लोगों ने उसका वध कर दिया| वही कुछ इतिहासकार कहते हैं कि जब पृथ्वीराज चौहान को मुहम्मद गौरी गजनी ले जा रहा था तो वहाँ पृथ्वी राज चौहान से मुहम्मद गौरी का वध किया था|
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