महमूद गजनवी जिसने भारत पर 17 बार आक्रमण किया |
महमूद गजनवी
महमूद गजनवी का जन्म 1 नवंबर 971 ईस्वी को हुआ था| उसका पूरा नाम अब्दुल कासिम महमूद था| वह गजनी के शासक सुबुकतुगिन का सबसे बड़ा पुत्र था| महमूद गजनवी को कुरान और मुस्लिम कानून का बहुत ज्ञान था| वह एक बहुत अच्छा तलवारबाज़ और निशानेबाज था| उसने बहुत से युद्धों में अपने पिता का साथ दिया था| सुबुकतुगिन ने उसकी योग्यता से प्रभावित होकर उसे खुरासान का सूबेदार नियुक्त कर दिया| लेकिन अपनी मौत से पूर्व सुबुकतुगिन महमूद गजनवी से नाराज हो गया था और उसने अपने छोटे बेटे इस्माईल को राजगद्दी सौंप दी| महमूद गजनवी इस अपमान को सहन नहीं कर सका और उसने इस्माईल के खिलाफ विद्रोह कर दिया| महमूद ने उसे पराजित करके कैद में डाल दिया और इस तरह वह 27 वर्ष की उम्र में बादशाह बन गया|कहा जाता हैं की बगदाद के खलीफा ने उसे सुल्तान की उपाधि भी दी और इस तरह वह पहला ऐसा शासक था जिसे सुल्तान की उपाधि मिली थी|
महमूद एक बहुत ही महत्वाकांक्षी राजा था , जिसमें अधिक से अधिक प्रदेश जीतने की लालसा पाई जाती थी| उसने राजा बनने के दो - तीन सालों के बाद ही भारत पर आक्रमण करने शुरू कर दिए| कहा जाता हैं कि उसे भारत पर बार बार आक्रमण करने की प्रेरणा खलीफा अल कादिर बिल्लाह से मिली| खलीफा ने महमूद को ये आदेश दिया कि वो भारत में मूर्ति पूजा को खत्म करके इस्लाम देश बनाए| इस वजह से भी महमूद ने भारत पर बार बार आक्रमण किये| उसने 1000 ईस्वी से 1027 ईस्वी तक 17 बार भारत पर आक्रमण किये|
1 पहला आक्रमण
महमूद गजनवी ने 1000 ईस्वी में भारत पर पहला आक्रमण किया| उसने खैबर दर्रे को पार कर सिंधु नदी के पक्षिम और पंजाब के उत्तर पक्षिम में सतिथ कुछ सीमांत दुर्गों पर अधिकार कर लिया और उनकी शासन का प्रबंध करके वापस लौट गया|
2 दूसरा आक्रमण - ( जयपाल से युद्ध 1001 ईस्वी )
1001 ईस्वी में महमूद गजनवी ने हिन्दूशाही वंश के शासक जयपाल के विरुद्ध चढ़ाई कर दी , जिसे उसके पिता ने भी दो बार हराया था| महमूद के सैनिकों की संख्या 10000 थी और जयपाल ने महमूद से युद्ध करने के लिए एक बहुत विशाल सेना तैयार की जिसमें 30000 पैदल सैनिक ,12000 घुड़सवार और 300 हाथी थे| पेशावर के निकट दोनों सेनाओ में घमासान लड़ाई| इस लड़ाई में जयपाल पराजित हुआ| इस लड़ाई में 15000 हिन्दू सैनिक मारे गए थे| जयपाल इस युद्ध में अपने संबंधियों सहित बंदी बना लिया गया था| तुर्कों को इस युद्ध में भारी धनराशि प्राप्त हुई थी| कुछ समय के बाद महमूद ने जयपाल से 50 हाथी और कुछ धन लेकर उसे उसके संबंधियों सहित रिहा कर दिया था| जयपाल के अपने राज्य पर लौटने के बाद प्रजा ने उसका कोई स्वागत नहीं किया| जयपाल इस अपमान को सहन नहीं कर सका और उसने अपने पुत्र आनंदपाल को राजगद्दी सौंप कर खुद को चिता में झोंक दिया|
3 तीसरा आक्रमण 1003 ईस्वी
भेरा के शासक विजयराय ने महमूद गजनवी को जयपाल के विरुद्ध सहायता देने का वचन दिया था , लेकिन उसने उस वचन को पूरा नहीं किया जिसके बाद महमूद गजनवी ने 1003 ईस्वी में भेरा पर चढ़ाई कर दी| विजयराय ने चार दिनों तक शत्रुओ का मुकाबला किया लेकिन जब अंत में उसे जीत की कोई आशा नहीं दिखी तो वह रण क्षेत्र से भाग गया| महमूद के सैनिकों ने उसका पीछा किया , लेकिन शत्रुओ के हाथों अपमानित से पहले ही विजयराय ने आत्महत्या कर ली| महमूद ने बड़ी संख्या में हिन्दुओ का वध किया| इस लड़ाई के बाद महमूद को भारी धन राशि प्राप्त हुई|
4 चौथा आक्रमण 1006 ईस्वी
महमूद ने चौथा आक्रमण मुल्तान के शासक अबुल फतेह दाऊद के खिलाफ किया था| अबुल फतेह शिया मत का अनुयायी था , और महमूद एक कट्टर सुन्नी होने के नाते उसे उसे काफिर समझता था| 1006 ईस्वी में महमूद ने मुल्तान पर चढ़ाई कर दी | सात दिनों के घेरे के बाद महमूद ने मुल्तान के दुर्ग पर अधिकार कर लिया| उस समय हिरात में गड़बड़ हो जाने के कारण महमूद को तुरंत वापिस जाना पड़ा| और उसने सुखपाल यानि नवासाशाह को जिसे उसने इस्लाम काबुल करने पर मजबूर कर दिया था , मुल्तान का शासक नियुक्त कर दिया| सुखपाल आनंदपाल का पुत्र था जिसने अबुल फतेह दाऊद का साथ देना चाहा था लेकिन मार्ग में ही महमूद ने उसे बंदी बना लिया और मुसलमान बना दिया था|
5 पाँचवा आक्रमण - ( नवासशाह की पराजय 1007 ईस्वी )
महमूद के चले के बाद नवासाशाह ने इस्लाम धर्म को त्याग दिया और अपने आप मुल्तान का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया| महमूद को ये समाचार मिलने पर उसने 1007 ईस्वी में मुल्तान पर दूसरी बार चढ़ाई कर दी| नवासाशाह को पराजित करके बंदी बना लिया गया और मुल्तान को महमूद ने अपने अधिकार में ले लिया | उसने अबुल फतेह दाऊद को इस शर्त पर मुल्तान का शासक स्वीकार किया कि वह प्रति वर्ष 20000 सोने की मोहरे सुल्तान को भेजेगा और इस्लाम के नियमों के अनुसार शासन करेगा|
6 छठा आक्रमण 1008 ईस्वी
अब महमूद गजनवी ने आनंदपाल की शक्ति को कुचलने का निश्चय किया| 1008 ईस्वी में उसने एक विशाल सेना सहित भारत पर छठा आक्रमण किया| आनंदपाल ने भी शत्रु का मुकाबला करने के लिए पूरी तैयारी कर ली थी| उसने उज्जैन , ग्वालियर , कलिंजर और दिल्ली के शासकों को सहायता के लिए प्राथना की| इन सब राजाओ ने आनंदपाल की सहायता के लिए अपनी अपनी सेनाएँ भेज दी| इस तरह आनंदपाल ने भी महमूद गजनवी के खिलाफ एक बहुत ही मजबूत सेना तैयार कर ली| कुछ मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार इस समय बहुत से हिन्दू स्त्रियों ने अपने गहने तक बेच दिए थे| लेकिन कुछ इतिहासकारों के अनुसार उस समय भारत देश में धन की कोई कमी नहीं थी जिस वजह से स्त्रियों को अपने गहने बेचने पड़े| दो की सेनाओ में सिंधु नदी के किनारे ओहिन्द के समीप एक भयानक लड़ाई हुई| शुरू में तो आनंदपाल के सैनिकों का पलड़ा भारी रहा और उन्होंने बहुत से मुसलमानों को मार डाला| महमूद खुद भी बहुत ज्यादा घबरा उठा और उसे अपने जीतने के चिन्ह नहीं दिखाई पड़े| लेकिन इस समय भाग्य ने उसका साथ दिया| बारूद के एकाएक फटने से आनंदपाल ल हाथी घबरा गया और रण क्षेत्र से भाग निकला| इससे आनंदपाल के सैनिकों में भगदड़ मच गई| तुर्कों ने भागते हुए सैनिकों का पिच किया और लगभग 20000 सैनिकों का वध किया| इस लड़ाई में महमूद गजनवी को शानदार विजय प्राप्त हुई| इस युद्ध में महमूद को भारी लूट प्राप्त हुई| इस विजय के बाद उसका उत्तर पक्षिमी प्रांतों पर अधिकार हो गया| लेकिन आनंदपाल ने शीघ्र ही अपने खोए हुए प्रदेश पुनः जीत लिए|
7 सातवाँ आक्रमण - ( नगरकोट की विजय 1009 ईस्वी )
पंजाब को जीतने के बाद महमूद ने कांगड़ा में सतिथ नगरकोट पर आक्रमण करने का निश्चय किया| उसने नगरकोट के मंदिरों के असीम धन के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था| 1009 ईस्वी में उसने अचानक ही उस नगर पर हमला कर दिया| वहाँ के राजा ने बिना विरोध किये ही उसकी अधीनता स्वीकार कर ली| और उसे बहुत सा धन और हाथी उसे दे दिए| मंदिर के पुजारिओ ने भी अपने द्वार खोल दिए क्युकी राजा ने उनकी कोई रक्षा नहीं की| तुर्कों ने मंदिरों से अपार धन बटोरा| इस धन में कई मन हीरे जवाहरात और सेकड़ों मन सोना चांदी था| तुर्की इतिहासकार उतबी के अनुसार इस लुटपाट एक चांदी का घर जोकि 30 गज लंबा और 15 गज चौड़ा था उसे पूरा लूट लिया था| उसने जीते हुए धन को अपने उटों और घोड़ों पर लाद कर गजनी को लौट गया| इस जीते हुए धन ने महमूद को संतुष्ट करने के बजाएँ और भी उसकी धन की लालसा को बढ़ा दिया|
8 आठवाँ आक्रमण 1010 ईस्वी
1010 ईस्वी में महमूद को फिर से मुल्तान पर आक्रमण करना पड़ा क्युकी अबुल फतेह दाऊद विद्रोही हो गया था| महमूद ने उसे पराजित करके मुल्तान पर अधिकार कर लिया| दाऊद को बंदी बना घूरक के दुर्ग में भेज दिया गया|
9 नौवा आक्रमण - ( थानेसर की विजय 1011 ईस्वी )
1011 ईस्वी में महमूद ने थानेसर पर आक्रमण कर दिया| थानेसर में एक बड़ा चकरस्वामी का मंदिर था जो कि अपनी विशाल धन संपत्ति के जाना जाता था| हिन्दू उसे उतना ही पवित्र मानते थे जितना कि मुसलमान मक्का को| कहा जाता हैं इस समय आनंदपाल ने महमूद से प्राथना कि की चकरस्वामी का मंदिर पूरे हिन्दुस्थान के लिए बहुत पवित्र हैं इसलिए इसे ना तोड़ा जाए , लेकिन महमूद पूरे हिन्दुस्थान में मूर्ति पूजा का नामों निशान मिटा देना चाहता था इसलिए उसने आनंदपाल की प्राथना को अस्वीकार कर दिया| महमूद के सैनिकों ने इस मंदिर को ध्वस्त करके सारी धन संपत्ति जब्त कर ली| इसके बाद उस नगर में सभी मंदिरों को ध्वस्त करके उनकी धन संपत्ति जब्त कर ली| महमूद चकरस्वामी की मूर्ति को मुसलमानों के पैरों के नीचे रुँदवाने के लिए ले गया| उसने बहुत से वह हजारों हिन्दू पूरषो और स्त्रियों को बंदी बना गजनी ले गया और वहाँ उसने उन्हे गुलाम बना कर बेच दिया|
10 दसवां आक्रमण 1013 ईस्वी
1012 ईस्वी में आनंदपाल की मौत हो गई| उसके बाद उसके पुत्र त्रिलोचनपाल और पौत्र भीमपाल ने कई वर्षों तक गजनवी तुर्कों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा| 1013 ईस्वी में महमूद ने नंदना के दुर्ग पर अचानक आक्रमण कर दिया| त्रिलोचनपाल सेना की कमान और दुर्ग की रक्षा की जिम्मेदारी अपने पुत्र भीमपाल को सौंप कर कश्मीर के शासक की सहायता लेने के चला गया| कश्मीर के शासक ने अपने प्रधान सेनापति तुंग के नेतृत्व में महमूद का विरोध करने के अपनी सेना भेज दी| भीमपाल के सुझाव को ना मानते हुए अभिमानी तुंग ने तुरंत ही महमूद की सेना पर आक्रमण कर दिया| भीमपाल को विवश होकर अपने शिविर को छोड़कर तुंग की सहायता के जाना पड़ा| महमूद गजनवी की सेना ने तुंग और भीमपाल की पूरी सेना को पराजित कर दिया| त्रिलोचनपाल ने इस युद्ध में बहुत बहादुरी से शत्रुओ का सामना किया लेकिन अंत में उसे भाग कर अपना जीवन बचाने के लिए कश्मीर की तरफ भागना पड़ा| कुछ समय के बाद त्रिलोचनपाल ने सरहिन्द को अपनी नई राजधानी बना लिया|
11 ग्यारहवा आक्रमण 1015 ईस्वी
कश्मीर के शासक ने त्रिलोचनपाल और भीमपाल को अपने राज्य में शरण दी थी| इसलिए कश्मीर को दंड देने के लिए महमूद ने अब कश्मीर पर आक्रमण करने बारे में सोचा| कश्मीर के शासक ने लोहकोट के शक्तिशाली दुर्ग से शत्रुओ का प्रबल विरोध किया और उनकी सेना को बहुत नुकसान पहुचाया| विवश होकर महमूद गजनवी को वापस अपनी सेना सहित जाना पड़ा|
12 बारहवाँ आक्रमण 1018-19 ईस्वी
1018 ईस्वी में महमूद ने एक विशाल सेना सहित भारत पर बारहवाँ आक्रमण किया| उसने यमुना पार करके बुलंदशहर में पहुच गया और वहाँ के राजा ने महमूद के सामने सर झुका के उसकी अधीनता स्वीकार कर ली| उसके बाद महमूद महावन जा पहुचा| वहाँ के शासक ने महमूद का डट कर विरोध किया लेकिन अंत में वह हार गया और उसने अपनी पत्नी और पुत्रों को मार कर खुद आत्महत्या कर ली| उसके बाद महमूद मथुरा नगर में पहुच गया जो कि श्री कृष्ण की जन्म स्थली हैं| इस नगर में सैकड़ों मंदिर थे और इस नगर के बीचोंबीच एक बहुत बड़ा मंदिर था| वहाँ के निवासियों का यह विश्वास था कि इस मंदिर का निर्माण मनुष्यों ने नहीं बल्कि देवताओ ने किया हैं| महमूद ने इस मंदिर को देख कर कहा कि इसका ना तो वर्णन किया जा सकता हैं और ना ही चित्र बनाया जा सकता हैं| नगर की और मंदिर की सुंदरता को देख कर एक बार तो महमूद भी हिचकने लगा| लेकिन अंत में उसे मंदिर को ध्वस्त करने का निश्चय करना ही पड़ा| मथुरा के मंदिरों और भवनों को धवस्त करने के लिए महमूद और उसके सैनिकों को बहुत मेहनत करनी पड़ी| इस नगर से उसे बहुत मात्रा में सोना चांदी प्राप्त हुआ| मथुरा से महमूद ने कन्नौज की तरफ कूच किया और इस नगर में लगभग 10000 मंदिर थे| कन्नौज का राजा महमूद के डर से नगर को छोड़कर भाग गया| महमूद ने इस नगर को खूब लूटा|
13 तेरहवाँ आक्रमण - ( कलिंजर की पराजय 1020 ईस्वी )
कन्नौज के शासक की कायरता पर राजपूत राजाओ को बहुत क्रोध आया| कलिंजर के राजा ने ग्वालियर के राजा से संधि करके कनौज के राजा के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया| इस युद्ध में कनौज का राजा मारा गया| महमूद को जब इस घटना की सूचना मिली तो उसने कलिंजर के राजा को पराजित करने के लिए एक बहुत विशाल सेना लेकर निकला| इधर कलिंजर के राजा ने भी एक विशाल सेना तैयार की जिसमें 145000 पैदल सैनिक 36000 घुड़सवार और 640 हाथी थे| राजपूतों की विशाल सेना को देख कर एक बार तो महमूद भी घबरा उठा , लेकिन उसने फिर युद्ध करने का मन बना लिया| कलिंजर का राजा इस युद्ध में बड़ी वीरता से लड़ा लेकिन अंत में उसका साहस टूट गया और वह रात के अंधेरे में रण क्षेत्र से भाग निकला| इससे राजपूतों में भगदड़ मच गई| महमूद को इस युद्ध में कोई शानदार विजय नहीं मिली और वह लूट का धन लेकर वापस चला गया|
14 चौदहवाँ आक्रमण 1021 ईस्वी
1021 ईस्वी में महमूद ने समस्त पंजाब पर अधिकार करने के उद्देश्य से भारत पर चौदहवाँ आक्रमण किया| उसने सबसे पहले पहाड़ी कबीलों को हरा करके उन्हे इस्लाम धर्म को कबूल करने के लिए मजबूर किया| इसके बाद उसने लोहकोट आदि कश्मीर के प्रदेशों से होते हुए पंजाब में प्रवेश किया| त्रिलोचनपाल अपने राज्य को छोड़कर चंदेल शासकों की सहायता मांगने के लिए चला गया| लेकिन त्रिलोचनपाल की अपने ही आदमियों के द्वारा हत्या कर दी गई| उसकी मौत के साथ ही पंजाब में हिन्दूशाही वंश का अंत हो गया| उसका पुत्र भीमपाल अजमेर को भाग गया| इस परिसतिथि का लाभ उठा कर महमूद ने सारे पंजाब पर अधिकार कर लिया| उसने मलिक अयाज़ नामक अपने योग्य सेनापति को पंजाब का शासक बना दिया| और इस तरह पंजाब पर महमूद का शासन स्थापित हो गया|
15 पंद्रहवाँ आक्रमण 1023 ईस्वी
1022 ईस्वी में महमूद ने दोबारा कलिंजर पर आक्रमण किया| पहले उसने ग्वालियर पर आक्रमण किया वहाँ के शासक अर्जुन चंदेल शासक गंडदेव ने शत्रुओ का 4 दिनों तक सामना किया लेकिन अंत में हार मानते हुए उसके सामने समर्पण कर दिया और उसे बहुत से हाथी भेट किये| ग्वालियर से महमूद की सेना कलिंजर की तरफ बढ़ा| कलिंजर अपनी मजबूती के लिए जाना जाता था| जब महमूद दुर्ग की तरफ बढ़ा तो उसने दुर्ग को चारों तरफ से घेर लिया और आने जाने के सभी मार्ग बंद कर दिए जिससे दुर्ग के अंदर के सैनिक भूख प्यास से मरने लगे और विवश होकर कलिंजर के राजा को महमूद का आधिपत्य मानना पड़ा| उसने महमूद को 300 हाथी भेट किये|
16 सोलहवां आक्रमण - ( सोमनाथ की लूट 1025 ईस्वी )
महमूद का सबसे प्रसिद्ध आक्रमण सोमनाथ मंदिर की लूट थी| इस मंदिर की धन संपदा उन सभी मंदिरों से कही अधिक थी जिन मंदिरों को महमूद ने पहले लूटा था| यह मंदिर काठियावाड़ में अरब सागर के तट पर सतिथ था| यह भारत का सबसे विशाल और मजबूत मंदिर माना जाता था| माना जाता हैं कि इस मंदिर का निर्माण परमार वंश के राजा भोज ने करवाया था| इस मंदिर के खर्च के लिए 10000 गाँव इसके नाम लगा दिए थे| सोमनाथ भगवान शिव का ही एक नाम था| इस मंदिर के अंदर शिवलिंग अति कीमती रत्नों से जड़ित था| यह मंदिर इतना बड़ा था कि इसकी छत 56 रत्न जड़ित खंबों पर खड़ी थी| एक हजार ब्राह्मण प्रति दिन इस मंदिर में पूजा किया करते थे| मंदिर के कोने में 200 मन भारी एक सोने की जंजीर लटकी रहती थी , जिसमें बहुत से घंटे लटके रहते थे| पूजा के समय ब्राह्मणों को बुलाने के लिए जंजीर को खीच कर घंटे बजा दिए जाते थे| देवता को प्रसन्न करने के लिए 500 नर्तकिया और 200 गायक मंदिर में रहते थे| यात्रियों का मुंडन करने के लिए 300 नाई भी रहते थे|
अक्टूबर 1025 ईस्वी में महमूद ने 80000 सैनिकों सहित सोमनाथ मंदिर पर चढ़ाई कर दी| तुर्क सेना राजस्थान के रेगिस्तान को पार करके गुजरात की राजधानी अनहिलवाड़ा में पहुच गई| वहाँ का राजा नगर को छोड़कर भाग गया था| वहाँ से आक्रमनकारिओ ने सोमनाथ पर धावा बोल दिया| वहाँ के पुजारियों ने शत्रुओ का कोई मुकाबला नहीं किया| उनका विश्वास था कि सोमनाथ देवता खुद शत्रुओ को दंड देंगे| मुसलमान मंदिर में प्रवेश कर गए और उन्होंने हजारों हिन्दुओ को जोकि उस समय पूजा कर रहे थे को मौत के घाट उतार दिया| महमूद ने मंदिर के अंदर प्रवेश करके सोमनाथ की मूर्ति के टुकड़े टुकड़े कर दिए और उन टुकड़ों को गजनी में ले जाकर वहाँ की जामा मस्जिद की दहजीज में लगा दिया ताकि वहाँ आने वाले मुसलमानों के पाँव उस पर पड़े| महमूद ने सोमनाथ के मंदिर से भारी मात्रा में सोना , चांदी और हीरे जवाहरात प्राप्त किये| और इस दौलत को समेत कर तुरंत ही गजनी को लौट गया| क्युकी उसे डर था कि उसका लूटा हुआ खजाना और युद्ध करने से ना खो जाए| कुछ इतिहासकारों के अनुसार सोमनाथ के मंदिर से महमूद को जितनी धन संपत्ति प्राप्त हुई उसका सौवा भाग भी भारत के किसी राजा के कोश में नहीं था|
सोमनाथ के आक्रमण से महमूद की प्रसिद्धि बहुत ही बढ़ चुकी थी|
17 सत्रहवाँ आक्रमण 1027 ईस्वी
सोमनाथ को विजय करने के बाद जब महमूद वापस जा रहा था तो रास्ते में आस पास के बहुत से जाटों ने उसे परेशान किया| जिसके बाद 1027 ईस्वी में उसने उन्हे दंड देने के लिए उन पर आक्रमण किया| जाटों को बुरी तरह पराजित किया गया| महमूद का ये अंतिम आक्रमण था| इसके तीन वर्ष बाद 1030 ईस्वी में महमूद गजनवी की मौत हो गई थी|
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