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सिकंदर के बाद इन आक्रमणकारिओ ने भारत पर आक्रमण किया था

 सिकंदर के बाद इन आक्रमणकारिओ ने भारत पर आक्रमण किया था 




ये बात उस समय कि हैं जब अलेक्जेंडर ने भारत पर आक्रमण किया था और राजा पोरस से हारने के बाद वो अपने देश मकदुनिया वापस चला गया था , लेकिन उसके वापस चले के बाद भी भारत के पक्षिमी सीमा पर विदेशी आक्रमण होते रहे| उनलोगों ने एशिया के विभिन्न स्थानों पर अपना प्रभुत्व कायम कर लिया था| भारत कि पक्षिमी सीमा पर भी उनके अड्डे थे , लेकिन जब मौर्यो की प्रधानता बढ़ी तो वे इधर बढ़ने में असमर्थ रहे| उनका प्रमुख केंद्र बैक्ट्रिया था , जिसकी स्थपना सिकंदर ने भारत अभियान के दौरान की थी| सैनिक दृष्टिकोण से बैक्ट्रिया बहुत ही सुरक्षित स्थान था , क्युकी पूर्व में हिंदुकुश और पामिर की श्रेणिया इसकी सीमा निश्चित करती थी , दक्षिण में अरकोशिया प्रदेश , पक्षिम में पार्थिया का राज्य और केसपियन सागर इसकी रक्षा करता था| बैक्ट्रियया की समृद्धि इसकी उर्वरता पर आरधरित थी| यूरोप और एशिया के यातायात कर मार्गों के मध्य में सतिथ होने के कारण इसका व्यापारिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्व था| बहुमूल्य खानों के लिए ये प्रसिद्ध था| लेकिन यहाँ सोने और चांदी का अभाव था| 



डायोडॉटस वंश 



 250 ईस्वी पूर्व में जब अंटीओकस द्वितीय सीरिया का राजा था , उसी समय बैक्ट्रियया में उसका राज्यपाल डायोडॉटस प्रथम था| डायोडॉटस प्रथम ने वहाँ अपनी स्वतंत्र सत्ता कायम कर ली| अंटीओकस कि मौत के बाद उसके सेल्यूकस द्वितीय ने अपनी बहन का विवाह डायोडॉटस प्रथम के साथ कर दिया और इस तरह से उसने अपनी राजनीतिक शक्ति मजबूत की| सेल्यूकस की इस नीति के पीछे ये उद्देश्य था कि वह बैक्ट्रिया को अपना मित्र बनाकर पार्थिया के विरुद्ध अपने को मजबूत करना चाहता था| 230 ईस्वी पूर्व में डायोडॉटस प्रथम का पुत्र डायोडॉटस द्वितीय राजा हुआ| उसने सीरिया के विरुद्ध पार्थिया से मित्रता कर ली जिसका परिणाम ये हुआ कि उसकी माता ने यूथिडएमस नामक सरदार से पुनर्विवाह कर लिया| यूथिडएमस ने डायोडॉटस द्वितीय का वध कर दिया और बैक्टरिया में नवीन राजवंश की स्थापना की| तब तक सीरिया में सेल्यूकस की मौत हो गई थी और अंटीओकस तृतीय वहाँ का राजा बन चुका था| वह महत्वाकांक्षी राजा था और सीरिया की खोई हुई शक्ति फिर से वापस लाना चाहता था| 208 ईस्वी पूर्व में उसने यूथिडएमस को बैक्टरिया नगर में घेर लिया| उसके बाद दोनों में समझोंता हो गया और अंटीओकस ने अपनी पुत्री का विवाह यूथिडएमस के पुत्र डैमेट्रियस के साथ कर दिया| 


यूथिडएमस एक साहसी और महत्वाकांक्षी राजा था| उसने बैक्टरिया के राज्य का विस्तार किया| क्युकी बैक्टरिया में धातु की कमी थी इसलिए उसने फरगना प्रदेश को जीतकर अपने राज्य में मिल लिया| 190 ईस्वी पूर्व में उसकी मौत हो गई| 



डैमेट्रियस 



डैमेट्रियस की मुद्राओ से उसकी महत्वाकांक्षा और साम्राज्य विस्तार की नीति का अभ्यास मिलता हैं| सिकंदर को वह अपना आदर्श मानता था| उसने अजय की उपाधि धारण की| डैमेट्रियस ने भारत के कुछ खंडों को जीतकर अपने राज्य में मिलाया| यहाँ उसका राज्य विस्तार सिकंदर से अधिक था| उसे रेक्स इंडोरम कहा जाता हैं| कुछ इतिहासकारों के अनुसार पुषयमित्र शुंग के समय हुए यवन आक्रमण का नेता डैमेट्रियस ही था| शुंग काल में भारत पर जो यवन आक्रमण हुए , उसका नेतृत्व डैमेट्रियस ने किया और अपने साम्राज्य को केसपियन सागर तक बढ़ाया| कुछ इतिहासकारों के अनुसार डैमेट्रियस ब्यास नदी के पूर्व में गया था| लेकिन यदि वह गया था तो उसकी मुद्राये उत्तर भारत में क्यू नहीं मिलती ? सिंधुनदी के पूर्व उसकी एक भी मुद्रा नहीं मिलती| उसका अधिकार सिंधु नदी के पक्षिम तक सीमित रहा था| पुषयमित्र कि सेना ने उसे वही रोक दिया था|


 कुछ इतिहासकारों के अनुसार डैमेट्रियस अपने साथ अपने भाई अपोलोडॉटस और सेनापति मिनाडर को लेकर आया था| डैमेट्रियस स्वयं ब्यास तक रहा और उसने अपने भाई को दक्षिण पक्षिम भारत कि तरफ विजय हेतु भेज दिया| कहा जाता हैं कि मिनाडर ने डैमेट्रियस से अधिक प्रदेश जीते थे| स्ट्रेबों के अनुसार भारत में यूनानियों के प्रसार का कुछ श्रेय मिनाडर को और कुछ श्रेय डैमेट्रियस को दिया जाता हैं| इनलोगों ने सिंधु के डेल्टा के भाग को ही नहीं बल्कि सोराष्ट्र के समुन्द्री तटों को भी जीता था| कुछ लोगों के अनुसार डैमेट्रियस भारत का दततामित्र ही था| शास्त्रीय प्रमाणों के अनुसार यवनों का दततामित्री तथा सोविर नामक स्थान से संबंध था| पलुटार्क के अनुसार मिनाडर अपनी नामप्रियता के लिए इतना प्रसिद्ध था कि उसकी लोकप्रियता इटिनी थी कि उसके मरने के बाद राज्य के विभिन्न नगरों के लोग उसके अवशेष के दावेदार बन गए थे| जिस समय भारत में डैमेट्रियस अपनी भारत विजय में लगा था , उसी समय बैक्टरिया में विद्रोह हो रहा था और डैमेट्रियस को वहाँ लौटना पड़ा था| डैमेट्रियस ने अपने पिता की समृति में यूथईडोमिया नामक नगर बसाया| 



यूक्रेटाइयडीज 



भारत में जब डैमेट्रियस बढ़ रहा था , उसी समय बैक्टरिया में यूक्रेटाइडीज का विद्रोह हुआ| वह सम्राट अंटीओकस चतुर्थ का सेनापति था| उसने एशिया का संगरक्षक कहा जाता हैं| वह निश्चित रूप से एक शक्तिशाली शासक था| वह एक कुशल रणीतिज्ञ था| उसने सगुयाना , बैक्टरिया , अरियाना , अरकोशिया , सिसतान और ईरान के प्रदेश जीतकर सीरिया साम्राज्य में मिलाया| उसके आक्रमणों और सफलताओ की सूचना पाकर डैमेट्रियस बैक्टरिया वापस लौटा| दोनों में युद्ध हुआ और उसमे डैमेट्रियस की हार हुई| ये युद्ध 167 ईस्वी पूर्व में हुआ था| इसके बाद डैमेट्रियस कि मौत हो गई थी| डैमेट्रियस की मौत के बाद यूक्रेटाइटस सर्वसत्ताधारी शासक बन गया| भारत कि तरफ बढ़ने के समय यूक्रेटाइटस ने हेलियोकलीज को बैक्टरिया का शासक बना दिया| हेलियोऑकस उसका पुत्र था| धीरे धीरे उसके साम्राज्य का पतन शुरू हो गया| मिनाडर ने भी उसका विरोध किया| अंत में उसे बैक्टरिया को लेकर ही संतोष करना पड़ा| 159 ईस्वी पूर्व में उसकी मौत हो गई| 



मिनाडर 


मिनाडर इस कुल का सबसे प्रसिद्ध शासक था| डैमेट्रियस ने उसे भारत में युद्ध अभियान पर भेजा था| उसने डैमेट्रियस की पुत्री ऐगायथोलिया से विवाह कर लिया| वह एक विशाल राज्य का शासक था| यूक्रेटाइटस की विपपतियों से लाभ उठा कर मिनाडर ने उसके राज्य के पूर्वी भाग पर आक्रमण कर दिया और गांधार तक के प्रदेश उससे छीन लिए| पक्षिम में उसके साम्राज्य की सीमा गांधार तक थी| भारत पर आक्रमण का श्रेय डैमेट्रियस और मिनाडर दोनों को दिया जाता हैं| 


डैमेट्रियस की अपेक्षा मिनाडर ने अधिक प्रदेश जीते थे| डैमेट्रियस ने तकशिला को केंद्र बनाकर अपोलोडॉटस को दक्षिण पक्षिम की तरफ और मिनाडर को पूर्व की तरफ भेजा था| भारतीय इतिहास मिनाडर का विशेष महत्व हैं क्युकी वो यहाँ आकर बोद्ध हो गया| मिनाडर के बुद्ध होने के बहुत से प्रमाण मिलते हैं|मिलिंदपनहो नामक पुस्तक से पता चलता हैं कि बोध आचार्य नागसेन ने उसकी शंकाये दूर की थी| वह कभी भिक्षुक नहीं हुआ और सदा ही उपासक बोद्ध रहा| मिनाडर के गुरु नागसेन ने अपनी अतभूत शक्ति के प्रताप से महात्मा बुद्ध की बहुमूल्य प्रतिमा निर्मित की थी| मिनाडर की मुद्राओ से भी उसके बुद्ध होने का प्रमाण मिलता मिलता हैं| इस प्रकार हम देखते हैं कि उसके बुद्ध होने के अनेक प्रमाण मिलते हैं| 


मिनाडर इंडो ग्रीक इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण योद्धा था| वह अपने न्याय के लिए बहुत प्रसिद्ध था| उसके मरने के बाद उसके अवशेष को लेकर प्रजा में झगड़े उत्पन्न हो गए थे| मिनाडर कर समयकाल को लेकर इतिहासकारों का मत एक नहीं हैं| कुछ इतिहासकारों के अनुसार उसे वे 165 ईस्वी पूर्व और 115 ईस्वी पूर्व में रखते हैं और कुछ कुछ लोग अलग तिथि बताते हैं| उसकी मौत के बाद से ही उसके वंश का पतन शुरू हो गया , क्युकी उसका कोई भी उत्तराधिकारी योग्य नहीं निकला| उसकी मौत के बाद उसकी रानी एगायथोकलिया अपने पुत्र स्ट्रेटों की संगरक्षिका के रूप में शासन करती रही| बालिग होने पर स्ट्रेटों ने शासन का भार अपने ऊपर ले लिया|


 वह स्ट्रेटों प्रथम के नाम से विख्यात हुआ| उसी समय युकरिडेमसवंश और यूक्रेटाइटसवंश के मध्य पुनः युद्ध हुआ| इन सभी घटनाओ से भारत में इंडो ग्रीक के पतन की शुरुआत हो गई| 159 ईस्वी पूर्व में यूक्रेटाइटस की मौत के बाद हेलिओकलीज राजा बना| इसी समाज शक आक्रमण के परिणामस्वरूप बैक्टरिया उसके हाथों से निकल गया| स्ट्रेटों प्रथम की कुछ मुद्राओ पर हेलिओकलीज का नाम मिलता हैं| इस आधार पर ऐसा अनुमान लगाया जाता हैं कि स्ट्रेटों प्रथम हेलिओकलीज से हार गया होगा| इसके बाद हेलिओकलीज ने एक बहुत बड़े क्षेत्र पर अधिकार कर लिया| कहते हैं कि झेलम नदी तक हेलिओकलीज के साम्राज्य का विस्तार था| 90 ईस्वी पूर्व में स्ट्रेटों द्वितीय का शासन शुरू हुआ| शकों के उत्थान से यूथिडएमस वंश का पतन हुआ| 


अंतियालकिड्स 


यूक्रेटाइटसवंश में हेलिओकलीज कि मौत के बाद उनके वंश का कोई स्पष्ट इतिहास नहीं मिलता हैं| उसके बाद तकशिला पर अंतियालकिड्स नामक एक राजा का राज था जिसने काशीनरेश की सभा में अपना एक दूत भेजा था| और कुछ इतिहासकारों के अनुसार इन दोनों के बीच में मित्रता भी थी| अंतियालकिड्स एक शतीक्षाल राजा था और उसका शासन पूर्वी और पक्षिमी गांधार पर भी था| कपिशा , पुष्कलवती और तकशिला उसके प्रधान शासन केंद्र थे| उसने तीनों प्रादेशिक शैलियों को मुदराये चलाई| 


उसके बाद इतिहास में भारत के यूनानियों के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती हैं| पारस्परिक कलह की वजह से भी यूनानियों का अंत हो गया| वही कुछ इतिहासकार ये भी मानते हैं कि बैक्टरिया के बार बार यूनानियों के ऊपर आक्रमण से उनकी स्वतंत्र क्षीण हो गई| कालिदास के अनुसार पुषयमित्र वंश के लोगों ने यूनानियों को पराजित किया| कुछ इतिहासकारों के अनुसार पार्थियों ने अंतिम रूप में यूनानियों की सत्ता को समाप्त किया| चीनी इतिहासकार भी इस बात को मानते हैं| 43 ईस्वी में पार्थियों ने काबुल पर भी अपना अधिकार कर लिया| तो इस प्रकार से भारत में यूनानियों का पतन हुआ| 


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