कैसे हुआ था महाभारत के सबसे शक्तिशाली योद्धा का जन्म ?
भीष्म :- भीष्म महाभारत के सबसे शक्तिशाली योद्धा थे l भीष्म का जन्म ही सबसे बड़ा रहस्य हैं महाभारत के अनुसार कुरु के वंश में आगे चल कर शांतनु नाम के राजा होते हैं जो कि अपने समय के बहोत ही पराक्रमी राजा होते हैं उनके राज्य बहोत ही दूर तक फैला था
एक दिन राजा शांतनु गंगा नदी के तट पर टहल रहे थे तभी उन्होंने गंगा को देखा जो वही पर विचर रही थी गंगा को देखते ही शांतनु को गंगा से प्रेम हो गया गंगा को भी शांतनु बहोत ही पसंद आते हैं दोनों एक दूसरे से विवाह कर लेते हैं लेकिन विवाह से पहले गंगा ने शांतनु से एक शर्त रही थी कि विवाह के बाद वो जहा भी जाना चाहे या कुछ भी करे शांतनु उन्हे रोकेंगे नहीं इस पर शांतनु मान गए विवाह के बाद गंगा को एक पुत्र होता हैं जिसे वे ले जाकर नदी में बहा देती हैं शांतनु सिर्फ उन्हे देखते ही रह जाते वे गंगा को रोक नहीं पाते ऐसी ही गंगा एक एक करके 7 बच्चों को नदी में बहा देती हैं जब गंगा अपने 8वें बच्चे को नदी में बहाने जाती हैं तब शांतनु उन्हे रोक लेते हैं एस पर गंगा अपने 8वें बच्चे को नही बहाती हैं तब शांतनु उन्हे पूछते हैं कि उन्होंने आखिर अपने बच्चों को नदी में क्यू बहाया तब गंगा उन्हे बताती हैं कि उन्हे और शांतनु को ब्रमहादेव से ये शाप मिल था
कि उन्हे धरती पर मनुष्य के रूप में जनम लेना पड़ेगा और जो उन्होंने अपने 7 बच्चों को नदी में बहाया हैं उन्हे ऋषि वशिष्ट से उनकी कामधेनु गाय चुराने कि वजह से शाप मिल था कि वो सभी धरती पर मनुष्य के रूप में जनम लेंगे उनमें से 7 बच्चों को बहा कर उन्होंने उस शाप से मुक्त कर दिया हैं पर 8वे बच्चों का समय अभी नहीं आया हैं इसलिए इसे अभी धरती पर ही रहना होगा क्युकी कामधेनु गाय चुराने में सबसे बड़ा हाथ इसी का था जब शांतनु गंगा के मुह से ये सब कुछ सुनते हैं तब उन्हे अपनी गलती का एहसास होता हैं और वे गंगा को रोकने कि कोशिश करते हैं पर गंगा उन्हे अपने वचन का बोध कराती हैं तब शांतनु केवल गंगा को अपने से दूर जाते देखते ही रहते हैं और गंगा माँ अपने साथ भीष्म को ले जाते हैं भीष्म का बचपन में देवव्रत था जब देवव्रत 15 साल के हो जाते हैं तब गंगा उन्हे लेकर शांतनु के पास आती हैं और उन्हे सौंप कर वापस गंगा में विलीन हो जाती हैं देवव्रत अपने पिता से मिलकर बहोत ही खुश होते हैं और उनके पास रहने लगते हैं जब वे बड़े होते हैं तब उनको युवराज के पद पर नियुकत किया जाता हैं एक दिन देवव्रत और उनके पिता शांतनु शिकार खेलने जाते हैं तब शांतनु शिकार खेलते हुए बहुत दूर निकल जाते हैं और वो नदी में एक बहुत ही सुन्दर स्त्री को देखते हैं जिनका नाम सत्यवती था सत्यवती को देखते ही शांतनु उन पर मोहित हो जाते हैं और उनसे बाते करने लग जाते हैं और दिन से रात हो जाती हैं इधर देवव्रत अपने पिता को अभी तक शिविर में ना देखकर बहुत ही दुखी होते हैं और वो उन्हे ढूँढने के निकलने लगते हैं कि तभी शांतनु आ जाते हैं और देवव्रत अपने पिता से उनके देर से आने का कारण पूछते हैं
तो उनके पिता इनकार कर देते हैं इस तरह रोज ही शांतनु सत्यवती से मिलने के लिए नदी के पास जाया करते एक दिन शांतनु ने सत्यवती से विवाह करने कि इकछा प्रगट कि तब सत्यवती ने उन्हे अपने पिता से मिलने के लिए कहा राजा शांतनु उनसे मिलने के चले गए और उनके पिता से उनकी पुत्री का हाथ मांगा पर सत्यवती के पिता ने एक प्रस्ताव रखा कि उनका और सत्यवती का विवाह तभी हो पाएगा जब वे वचन देंगे कि सत्यवती का पुत्र ही राजा बनेगा लेकिन शांतनु इस शर्त को मानने से इनकार कर दिया और वह से चले गए उसके के बाद शांतनु बहुत ही उदास रहने लगे और उनकी उदासी को देखकर उन्होंने अपने पिता इसका कारण पूछा पर शांतनु ने उन्हे कुछ नहीं बताया तब देवव्रत ने शांतनु के सारथी से इस बारे में पूछा तो उन्होंने उसे सब कुछ बता दिया इसके बाद देवव्रत सत्यवती के पिता से मिलने गए और उनसे जाकर इस बारे में बात कि तब सत्यवती के पिता के ना मानने पर देवव्रत ने प्रतिज्ञा कि की वह कभी भी विवाह नहीं करेगा और आजीवन अविवाहित ही रहेगा इस भीषण प्रतिज्ञा के बाद देवव्रत का नाम भीष्म पर गया और उन्हे संसार भीष्म के नाम से जानने लगा जब शांतनु को भीष्म कि इस प्रतिज्ञा के बारे में पता चला तो वे बहुत ही दुखी हुए और सदा उदास ही रहने लगे उनकी उदासी इतनी बढ़ गई कि एक दिन उनकी इसी दुख में मौत हो गई मरने से पहले शांतनु ने भीष्म को इकछा mretue का वरदान दे दिया और अपने दो पुत्रों विचत्रवीर्य और चित्रांगदा को भीष्म के हवाले छोर कर हमेशा के लिए मौत कि नींद सो गए उसके बाद भीष्म ने हस्तिनापुर के राजा के रक्षक के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया उन्होंने अनेकों युद्धों में भाग लिया और उनपर विजय प्राप्त कि विचित्रवीर्य और चित्रांगदा के विवाह के लिए सत्यवती ने भीष्म को काशिराज कि राजकुमारिओ से अपने दोनों पुत्रों के विवाह कि बात कही और भीष्म इस बात के लिए भीष्म तैयार हो गए और और वो काशिराज कि राजकुमारिओ के स्वयंवर में चले गए और वह जाकर उन्होंने काशिराज के स्वयंवर में वहा जीतने भी राजा महाराजा आए हुए थे सभी को हरा दिया और काशिराज कि राजकुमारिओ को जबरदस्ती अपने साथ ले जाने लगे उन तीन राजकुमारिओ के नाम अम्बा अंबिका अंबालिका था इन तीनों मे से अम्बा शालव नरेश से प्रेम करती थी पर शालव नरेश को भीष्म ने स्वयंवर में ही हर दिया था जिस वजह से शालव नरेश भीष्म को नहीं रोक पाए और अम्बा को मजबूरन भीष्म के साथ जाना पड़ा और भीष्म ने सत्यवती के दोनों पुत्रों का अंबालिका और अंबिका से विवाह कर दिया लेकिन अम्बा को लेकर भीष्म चिंतित हो गए
और वो अम्बा से उनके बारे मैं पूछने लगे तब अम्बा ने बताया कि वो शालव नरेश से प्रेम करती हैं इस पर भीष्म अम्बा को लेकर शालव नरेश के पास ले गए लेकिन शालव नरेश ने म्बा से विवाह करने से मन कर दिया क्युकी वो भीष्म से हार चुके थे और अम्बा उनकी हारी हुई वस्तु थी जिसे वो स्वीकार नहीं करना चाहते थे इस पर अम्बा ने भीष्म से विवाह करने कि इकछा प्रगट कि पर भीष्म ने ये कहते मन कर दिया कि वो इनके साथ विवाह नहीं कर सकते क्युकी उन्होंने विवाह न करने कि प्रतिज्ञा की हैं इस पर अम्बा बहुत ही क्रोधित होते हैं और वो ऋषि परशुराम के पास जाती हैं और उन्हे अपने दुख के बारे में बताती हैं इस पर परशुराम भी बहुत क्रोधित होते हैं और वो भीष्म को अम्बा से विवाह करने के लिए कहते हैं पर भीष्म साफ मन कर देते हैं जिसके कारण भीष्म और परशुराम में युद्ध हुआ और एस युद्ध में भीष्म कि विजय हुई और अम्बा ने ये प्रण किया कि वो अगके जन्म मे भीष्म का वध करेगी इसके बाद अम्बा वहा से चली गई कुछ समय के बाद सत्यवती के दोनों पुत्रों को मौत हो गई जिसके बाद ऋषि वेदव्यास कि कृपा से विदुर ,धृतराष्ट्र ,पांडु का जन्म हुआ धृतराष्ट्र के अंधे होने कि वजह से पांडु को राजसिंघासन प्राप्त हुआ लेकिन कुछ समय के बाद पांडु कि मौत के बाद धृतराष्ट्र को राजसिंघासन मिला और विदुर एक दासी का पुत्र था जिस कारण उसे मंत्री का पद सौंपा गया इसके बाद धृतराष्ट्र कि पत्नी गांधारी ने 100 पुत्रों को जन्म दिया और पांडु कि पत्नी कुंती ने 5 पुत्रों को जन्म दिया महाभारत के भयंकर युद्ध में भीष्म कौरव पक्ष कि और से लड़े और अम्बा ने इस जन्म में शिखंडी के रूप मे जन्म लिया और महाभारत के इस युद्ध में उसने पांडवों का साथ दिया और भीष्म पर पहला वार शिखंडी ने ही किया था|
जिसके बाद अर्जुन ने एक एक करके कई बाण भीष्म को मारे असल में भीष्म किसी स्त्री के सामने शस्त्र नहीं उठाते थे और शिखंडी एक किन्नर थी जिस कारण से भीष्म ने अपने शस्त्र त्याग दिए और अर्जुन ने शिखंडी के पीछे से एक एक करके कई बाण पितमाह भीष्म को मारे और भीष्म बयानों कि शया पर लेट गए और महाभारत युद्ध के खतम होने के बाद उतरायन के दिन उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए |
भीष्म को बहुत से अस्त्र शस्त्रों का ज्ञान था जिस कारण वे कई महारथीओ के बराबर शक्तिशाली थे और उन्हे युद्ध में खुद अर्जुन और बाकी के पांडवों तक बस कि बात नहीं थी इसलिए श्रीकृष्ण को पांडवों को जिताने के लिए शिकंडी का सहारा लेना पड़ा भीष्म आठ वसुओ में से एक थे जिन्होंने धरती पर शाप के कारण जन्म लिया था|महाभारत के युद्ध में भीष्म ने अकेले ही पांडवों के साथ हर दिन के युद्ध में हर एक दिन लगभग 10000 योद्धाओ को मारा था और पांडवों कि बहुत सी सेना का वध किया था
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