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परमार वंश का इतिहास

परमार वंश का इतिहास  









आज के इस हम परमार वंश के बारे में जानेंगे| मालवा के परमार वंश ने नौवी शताब्दी से गराहवी शताब्दी तक शासन किया और उस समय की राजनीति में सक्रिय भाग लिया| राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से परमार वंश इतिहास का बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया हैं| कुछ लोग इन्हे राष्ट्रकूटो का वंशज मानते हैं| अग्निकुल के राजपूतों  में परमार प्रमुख हैं| इस शाखा का आदिपुरष परमार था , लेकिन राजनीतिक शक्ति के रूप में इस वंश का संस्थापक उपेन्द्र अथवा कृष्णराज था| वह राष्ट्रकूटो का सामंत था| 


 सीयक हर्ष



इस वंश का पहला एतिहासिक शासक सीयक हर्ष था| उसे श्रीहर्ष भी कहा जाता था| वह प्रथम स्वतंत्र और शक्तिशाली शासक था| उसका संघर्ष मानयखेट के राष्ट्रकूटो से हुआ| उसने खोहिग नामक राष्ट्रकूट शासक को पराजित कर विपुल सम्पति प्राप्त कि थी| उसने राजस्थान के हुन वंश को युद्ध में पराजित किया| इस हुन नरपति का नाम रदुपाती था| सीयक हर्ष एक महान सेनानी और योद्धा था| 


वाक्पतिमुनज़्



हर्ष का उतराधिकारी वाक्पतिमुनज़् था| मालवा के परमारों को शक्ति का उत्कर्ष उसी के समय में हुआ था| एक साहित्यक ग्रंथ में उसे केरल , चोल , कर्णाट , लाट , कलचुरी आदि राज्यों की विजय का श्रेय दिया जाता हैं| उसने राष्ट्रकूटो कि तरह 'श्रीवल्लभ' और 'अमोघवर्ष' उपाधिया धारण की| उसकी सबसे प्रसिद्ध विजय कल्याणी के चालुक्य राजा तैलप द्वितीय के ऊपर थी| मुंज ने तैलप को  6 बार हराया था और उसके राज्य के उत्तरी भाग पर अधिकार कर लिया था| सातवी बार उसने गोदावरी नदी को पार कर चालुकयो पर आक्रमण किया और इस बार स्वयं तैलप से प्रजीय हो गया और बंदी बना लिया गया| भागने के षडयंत्र में वह पकड़ा गया और मारा गया| वह स्वयं विद्वान था और विद्वानों और लेखकों का संगरक्षक था| उसकी सभा में परिमलगुप्त , धन्जय , धनिकभट , हलायुध और अमितगती जैसे विद्वान थे| उसने कई सरोवरों और मंदिरों का निर्माण करवाया| 



सिंधुराज 


वाक्पतिमुनज़् के बाद उसका भाई सिंधुराज राजा हुआ| वह 'नवसहसानक' भी कहलाता था| उसने भी कई राज्यों पर विजय प्राप्त की| उसने हुनराज को भी पराजित किया| उसके बाद उसका पुत्र भोज राजा हुआ| 



भोज 

 

भोज इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था| उसने मुंज कि विजय नीति का अवलंबन किया| उसने अपने चाचा कि मौत का बदला लेने के लिए कल्याणी के चालुक्य राजा विक्रमादित्य चतुर्थ को पराजित किया| इसके बाद उसने कलचुरी गंगेदेव को हराया और उत्तर में कुछ समय के लिए कान्यकुब्ज पर अधिकार कर लिया| बिहार के पक्षिमी भाग पर आधिपत्य के कारण ही आरा और उसके आस पास के प्रदेश को भोजपुर कहते हैं| गुजरात और सोराष्ट्र के ऊपर जब तुर्कों का आक्रमण हो रहा था , तब उसने उन्हे वह से भगा दिया| उसने गुजरात के सोलंकियों पर भी कई सफल आक्रमण किये| निरंतर युद्धों के कारण ही उसकी शक्ति शीथल पड़ने लगी थी| चंदेल राजा विद्याधर से उसे मुह की खानी पड़ी थी| लगभग 35 वर्षों के शासन में उसने सुदूर प्रदेशों में विजय प्राप्त की| भोज ने अनहिलवाड़ा के शासक को पराजित किया था| उदयपुर - प्रशस्ति में चेदि , लाट और तुरुषकों के विरुद्ध भी उसकी विजयों का वर्णन मिलता हैं| सोलंकी और कलचुरी शासकों ने आपस में संगठन कर भोज पर आक्रमण किया तथा उसकी राजधानी धार और मालवा को खूब लूटा| भोज युद्ध में मार गया| इसमे कोई संदेह नहीं की भोज एक पराक्रमी शासक था| एक अभिलेख में उसे 'सार्वभोम' राजा कहा गया हैं| उसका प्रसिद्ध सेनापति जैन कुलचंद्र था| उसने 1018 ईस्वी से 1060 ईस्वी तक शासन किया था| 






भोज मात्र एक राजनीतिक विजेता ही नहीं बल्कि साहित्य , संस्कृति और कला का भी संगरक्षक था| असाधारण योद्धा कि तरह वह एक असाधारण साहित्यक भी था| उसे 'कविराज' भी गया हैं| उसकी प्रसिद्धि उसकी योग्य शासन ववस्था , आदर्श न्याय , पांडित्य और विद्या को प्रशय देने के कारण हुई थी| उसने कई मंदिर बनवाए तथा कई भवनों का भी निर्माण करवाया था| उने उज्जैन के अतिरिक्त धार को राजधानी बनाकर उसकी शोभा बढ़ा दी और वह से थोड़ी ही दूर भोजपुर नामक नगर कि स्थापना की| उसकी अमरकीर्ति भोजशाला नामक एक तालाब था , जिससे भूमि की सिचाई होती थी| धार के महाविद्यालय में दूर दूर से विद्यार्थी आते थे| भोज एक शिवभक्त थे| भोज कि मौत से विद्या और कला आश्रयहीन हो गई| संस्कृत साहित्य में भोज का नाम कालिदास और भवभूति के साथ लिया जाता हैं| उसने बहुत सारे नगर और झीले बनवाए थे| वह अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णु था| भोज के बाद परमारों की शक्ति क्षीण हो गई| चालुकयो और सोलंकियों से उनका बराबर संघर्ष होता रहा| एक शासक उदयादित्य ने अपनी शक्ति के पुनरुद्धार का प्रयत्न किया , परंतु उसके वंशज उसे सुरक्षित नहीं रख सके| 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन के सेनानायक ने मालवा पर आक्रमण किया और परमार वंश का अंत हो गया| 





तो ये था हमारा आज का लेख परमार वंश के ऊपर आपको ये लेख कैसा लगा हमे कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताए और अपने सुझाव भी जरूर दें , आपके सुझाव हमारे लिए बहुत उपयोगी होते हैं , तो मिलते हैं अगले ब्लॉग में तब तक के लिए धन्यवाद| 

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