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सिक्खों के सातवें गुरु हरराय देव जी का इतिहास |

सिक्खों के सातवें गुरु हरराय देव जी का इतिहास 


गुरु हरगोबिन्द जी के बाद गुरु हरराय जी सिक्खों के सातवें गुरु बने| गुरु हरराय जी का जन्म 30 जनवरी 1630 ईस्वी को हुआ था| उनके पिता का नाम बाबा गुरदिता था जो कि हरगोबिन्द जी के बड़े बेटे थे| उनकी माता का नाम निहाल कौर था| हरराय जी बचपन से ही कोमल हृदय के थे| जब वे शिकार खेलने जाया करते थे तो पशु पक्षियों को मारने की जगह उन्हे घर ले आया करते थे और उन्हे पाला करते थे| इस तरह उन्होंने घर में एक छोटा सा चिड़ियाघर बना लिया था| गुरु हरगोबिन्द जी के पाँच पुत्र थे :- बाबा गुरदिता , सुरजमल ,अनीराई और तेगबहादुर| इनमें से तीन पुत्रों का तो गुरु हरगोबिन्द जी के गुरु काल में ही देहांत हो चुका था और केवल दो ही पुत्र जीवित बचे थे तेगबहादुर और सुरजमल| सुरजमल सांसारिक में अधिक रुचि लेता था और तेगबहादुर जी त्यागी प्रवर्ति के इंसान थे| इसलिए गुरु हरगोबिन्द जी ने दोनों को ही गुरु गद्दी के योग्य ना समझते हुए अपने पोते गुरु हरराय को गुरु बनाया| 


गुरु हरराय जी ने गुरु हरगोबिन्द जी के कहने पर अपने पास 2200 घुड़सवारों की सेना जरूर रखी पर उन्होंने शांति की नीति ही बनाई रखी| उन्होंने अपना ध्यान धर्म प्रचार करने में ही लगाया| उन्होंने अपने गुरुकाल का अधिकतर समय कीरतपुर में बिताया| मुग़ल सम्राट शाहजहाँ का बड़ा बेटा दारा शिकोंह उदार धार्मिक विचारों वाला मुसलमान था और उसका झुकाव अधिकतर सूफी मत के सिद्धांतों की तरफ था| वह साधु संतों का बहुत सम्मान करता था| इस कारण से उसके गुरु हरराय से बहुत अच्छे संबंध थे| दारा कई बार गुरु साहिब के दर्शन करने भी आया था| 1658 ईस्वी में शाहजहाँ के पुत्रों में उत्तराधिकार संबंधी युद्ध छिड़ गया| इस युद्ध में औरंगजेब विजयी हुआ| सामुगढ़ की लड़ाई में पराजित होने के बाद दारा पंजाब की तरफ आया और गुर हरराय जी से मिला और उनसे सहायता मांगी| कुछ लोगों के अनुसार गुरु साहिब ने एक विशाल सेना दारा की सहायता के लिए भेजी लेकिन बहुत से लोग इस कथन को सच नहीं मानते| क्युकी गुरु साहिब एक शांतिप्रिय व्यक्ति थे| हो सकता हैं कि गुरु साहिब ने दारा को युद्ध जीतने का आशीर्वाद दिया हो लेकिन लोगों के अनुसार गुरु साहिब ने दारा के साथ अपनी सेना नहीं भेजी थी| 


अपने भाईओ को हराने के बाद अब औरंगजेब ने गुरु साहिब को दिल्ली बुलाया| औरंगजेब गुरु साहिब से दारा की सहायता और सिक्ख धर्म के बारे में पूछताछ करना चाहता था| गुरु साहिब ने स्वयं जाने की अपेक्षा अपने पुत्र रामराय को दिल्ली भेज दिया| वह उस समय 14 वर्ष का था| कहा जाता हैं कि रामराय ने कुछ चमत्कार दिखा कर दरबार के लोगों को प्रभावित किया| मुग़लों ने रामराय से सिक्ख धर्म के बारे में बहुत से प्रश्न पूछे जिसका रामराय ने बहुत योग्यता पूर्वक उत्तर दिया| जब औरंगजेब ने उनसे आसा दी वार में दिए गए एक श्लोक के बारे में पूछा कि इसमें मुसलमान शब्द का प्रयोग क्यू किया गया हैं , तब रामराय ने कहा कि इसमें मुसलमान शब्द भूल से लिखा गया हैं असल यहाँ पर मुसलमान नहीं बेईमान लिखा जाना था| ये जवाब सुनकर मुग़ल सम्राट संतुष्ट हो गया| लेकिन जब हरराय जी को ये पता चल कि रामराय ने दिल्ली दरबार में चमत्कार दिखा कर और गुरु नानक देव जी की पवित्र वाणी को बदल कर कायरता दिखाई हैं तो वे अपने पुत्र के इस ववहार से बहुत दुखी हुए| अब उन्हे विश्वास हो गया कि वो गुरु गद्दी के योग्य नहीं हैं| इस कारण से उन्होंने अपने छोटे पुत्र हरकृष्ण को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया| 


रामराय ने कीरतपुर लौटने पर गुरु साहिब से माफी मांगी और गुरु गद्दी को अपने पक्ष में करने का सोचा| लेकिन गुरु साहिब ने अपना फैसला नहीं बदला| उन्होंने अपने छोटे बेटे हरकृष्ण को ही अपना उत्तराधिकारी बनाया फिर चाहे वो उस समय पाँच वर्ष का बालक ही था| रामराय को सिक्ख सम्प्रदाए से निकाल दिया गया| जिसके बाद रामराय भी गुरु साहिब के विरुद्ध षडयंत्र रचने लगा| गुरु हरराय जी का 6 अक्टूबर 1661 ईस्वी को देहांत हो गया| 


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