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जानिए सिक्खों के चौथे गुरु रामदास जी का इतिहास जिन्होंने अमृतसर की नींव रखी |

सिक्खों के चौथे गुरु रामदास जी का इतिहास | History of guru ramdas ji  



गुरु अमरदास जी के बाद सिक्खों के चौथे गुरु रामदास जी थे|  गुरु अमरदास जी ने बीबी भानी और गुरु रामदास जी की सेवा से प्रसन्न होकर उन्हे ये आशीर्वाद दिया कि अब से सिक्ख गुरु की गद्दी उनके ही परिवार में रहेगी| 


जन्म 

गुरु रामदास जी का जन्म 1534 ईस्वी में लाहौर नगर की चुना मंडी में हुआ था| उनके पिता का नाम हरीदास था जो कि सोढ़ी जाति के खत्री थे| उनकी माता का नाम अनूप देवी था| रामदास जी के बचपन का नाम जेठा था| जेठा जी बचपन से ही धार्मिक विचारों के थे| वे ईश्वर के भजन गाते रहते थे और जो कुछ भी घर से प्राप्त होता था उसे साधु संतों में बाँट देते थे| उनके माता पिता निर्धन थे और वे चाहते थे कि उनका पुत्र कोई काम धंधा करके उनका हाथ बटाएँ| जेठा जी उबले चने बेच कर रोजी रोटी कमाते थे| 



कहा जाता हैं कि एक दिन जेठ जी ने कुछ सिक्खों को ढोलकियों सहित शब्द गाते हुए और खुशियों से झूमते हुए जाते देखा| ये शब्द सुन के वे बहुत प्रभावित हुए| वे भी सिक्खों के साथ गुरु साहिब के दर्शन करने के लिए गोइंदवाल चल गए| गोइंदवाल पहुचने पर वे गुरु साहिब के चरणों में गिर पड़े| भाई जेठा ने दिन रात गुरु साहिब की सेवा की| इतनी सेवा करने पर भी वे गुरु घर से कुछ नहीं खाते थे और उबले हुए चने बेच कर अपना जीवन निर्वाह किया करते थे| गुरु अमरदास जी भाई जेठा के गुणों से इतने प्रभावित हुए कि बिना उनकी जाति पूछे अपनी छोटी पुत्री का विवाह उनके साथ कर दिया|


 भाई जेठा की इस समय आयु 19 वर्ष थी| विवाह के बाद भी भाई जेठा जी गुरु साहिब की सेवा बहुत किया करते थे जेसे कि वह विवाह से पहले किया करते थे| इस कार्य में बीबी भानी ने भी अपने पति भाई जेठा का साथ दिया| वह केवल अमरदास जी को अपना पिता ही नहीं बल्कि अपना गुरु भी समझती थी| जेठा जी के घर तीन पुत्रों ने जन्म लिया| सबसे बड़े पुत्र का नाम पृथ्वी चंद , दूसरे पुत्र का नाम महादेव था और सबसे छोटे पुत्र का नाम अर्जुन देव था| 



गुरु अमरदास जी के दो पुत्र भी थे जिनका नाम मोहन तथा मोहरी थे| गुरु अमरदास जी की जितनी सेवा भाई जेठा जी ने की थी उतनी सेवा उनके पुत्रों ने नहीं की थी| जिसके कारण गुरु अमरदास जी ने भाई जेठा को अपना सबसे प्रिय शिष्य समझते हुए 1574 ईस्वी में उत्तराधिकारी नियुक्त किया| सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने बीबी भानी की सेवा से प्रभावित होकर ये वरदान दिया कि इसके बाद गुरु रामदास और उनके घराने से ही सभी गुरु होंगे| गुरु रामदास जी 1574 ईस्वी से लेकर 1581 ईस्वी तक गुरु रहे| उन्होंने सिक्ख धर्म के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया|



अमृतसर की नींव 


गुरु रामदास जी ने सिक्ख धर्म के लिए सबसे महत्वपूर्ण काम अमृतसर की नींव रखना था| कहा जाता हैं कि इस तीर्थ स्थान को स्थापित करने का विचार सर्वप्रथम गुरु अमरदास जी को आया था| मुग़ल सम्राट अकबर ने बीबी भानी के नाम कुछ गावों की भूमि लगा दी| गुरु अमरदास जी ने ये भूमि गुरु रामदास जी को सौंप दी| गुरु साहिब के आदेशानुसार रामदास जी ने इस भूमि पर संतोखसर और अमृतसर नामक दो सरोवरों की खुदाई का काम करवाया| गुरु गद्दी पर बैठने के बाद गुरु रामदास जी स्वयं वहाँ जाकर रहने लगे| इसका एक कारण ये भी था कि गुरु रामदास जी गुरु अमरदास जी के पुत्र बाबा मोहन से झगड़ा मोल नहीं लेना चाहते थे| 



अमृतसर सरोवर की खुदाई का काम बाबा बुड्डा की देख रेख में हुआ था| गुरु साहिब ने व्यापारियों को कहा कि वे वहाँ जाकर रहे और अपना कारोबार चलाए| लोगों की पानी की आवशकता को पूरा करने के लिए कुए खोदे गए| धीरे धीरे करके अमृतसर सरोवर के आस पास बहुत से लोग आकर रहने लगे और वहाँ पर एक बाजार बन गया जिसे गुरु का बाजार कहा जाने लगा| बाद में अमृतसर तालाब के कारण इसे अमृतसर नगर कहा जाने लगा| इस नगर की स्थापना से सिक्खों को अपना एक तीर्थ स्थान मिल गया| अमृतसर का सरोवर की स्थापना की वजह से बहुत से लोग जो कि अमृतसर नगर के आस पास रहा करते थे वे सिक्खों के संपर्क में आए और उन्होंने भी सिक्ख धर्म अपनाना शुरू कर दिया| इनमें से जाट लोग भी थे जो कि बाद में सिक्खों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण जाति सिद्ध हुई , इस जाति ने बाद में सिक्ख धर्म को बचाने में बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया| 


मसंद प्रथा का आरंभ 


जब गुरु रामदास जी ने अमृतसर सरोवर की खुदाई का काम आरंभ करवाया तब उन्होंने ये अनुभव किया कि इस कार्य को पूरा करने के धन की बहुत आवश्यकता हैं| इसलिए उन्होंने अपने कुछ श्रद्धालु सिक्खों को धन जमा करने के लिए विभिन्न स्थानों में भेज दिया| इन्हे बाद में मसंद कहा जाने लगा| मसंद लोग धन जमा करने के साथ सिक्ख धर्म का प्रचार भी किया करते थे| रामदास जी के समय में मसंद को रामदासये कहा जाता था, बाद में गुरु अर्जुन देव जी के समय इनको मसंदों के नाम से जाना जाने लगा| 

गुरु रामदास जी के समय में सिक्खों और उदासियों में समझौता हो गया| उदासी मत के प्रवर्तक बाबा श्रीचंद गुरु रामदास जी से मिलने के लिए आए और दोनों में मैत्रीपूर्ण बात चीत हुई| बाबा श्रीचंद गुरु जी नम्रता से बहुत प्रभावित हुए| और उन्होंने ये मान लिया कि गुरु अंगद देव जी और गुरु अमरदास जी गुरु गद्दी के वास्तविक अधिकारी थे| गुरु रामदास जी के मुग़ल सम्राट अकबर के साथ भी मैत्रीपूर्ण संबंध थे| एक बार गुरु रामदास जी के कहने पर अकबर ने पंजाब के कृषकों का कर माफ कर दिया था| गुरु रामदास जी के प्रभाव में बहुत से हिन्दुओ और मुसलमानों ने सिक्ख धर्म अपना लिया| 



1581 ईस्वी में अपने देहांत से पूर्व गुरु रामदास जी ने अपने सबसे छोटे पुत्र अर्जुन देव को अपना उत्तराधिकारी बना लिया| पहले तीन गुरुओ में से किसी ने भी अपने पुत्र को अपना उत्तराधिकारी नहीं नियुक्त किया था| लेकिन गुरु अमरदास के आशीर्वाद के कारण गुरु साहिब का पद पैतृक हो गया| जिसके बाद गुरु रामदास जी ने अपने पुत्रों में से ही सबसे योग्य पुत्र को गुरु गद्दी सौंपी| 




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