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अगस्त, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इस वजह से मनाया जाता हैं ओणम

इस वजह से मनाया जाता हैं ओणम  अभी देश के दक्षिण में सतिथ केरल में ओणम का पर्व मनाया जा रहा हैं| ये पर्व 20 अगस्त को शुरू हुआ हैं और 31 तारीख तक चलेगा| बचपन से आपने भी इस ओणम पर्व के बारे में जरूर सुना होगा लेकिन क्या आपने कभी सोच हैं कि आखिर ओणम मनाया क्यू जाता हैं , तो आज के इस लेख में हम आपको ओणम के पर्व का इतिहास बताते हैं|  ओणम का इतिहास  ओणम का पर्व भारत के दक्षिण में सतिथ केरल राज्य में मलयाली समाज द्वारा मनाया जाता हैं| ओणम पर्व का इतिहास राजा बलि से जुड़ा हुआ हैं| पौराणिक कथा के अनुसार बलि नाम के एक पराक्रमी राजा हुआ करते थे , जो कि अपनी प्रजा में सर्वप्रिय हुआ करते थे| उनकी अच्छाइओ के चर्चे देवताओ तक थे| कहा जाता हैं कि अपने समय में राजा बलि बहुत ही दयावान राजा थे| देवता भी उनकी अच्छाई से ईर्षा करने लगे थे| एक बार राजा बलि के अंदर अहंकार आ गया| राजा बलि भगवान विष्णु के भक्त थे और अपने भक्त राजा बलि इस दशा को देखकर उन्होंने बलि को पाप मुक्त करने का सोचा| वे राजा बलि के राज्य में एक वामन का रूप धर कर आए| वे राजा बलि से मिले| राजा बलि ने उनका सत्कार किया और उनसे कुछ ...

महमूद गजनवी जिसने भारत पर 17 बार आक्रमण किया

  महमूद गजनवी जिसने भारत पर 17 बार आक्रमण किया |                                                                                               महमूद गजनवी   महमूद गजनवी का जन्म 1 नवंबर 971 ईस्वी को हुआ था| उसका पूरा नाम अब्दुल कासिम महमूद था| वह गजनी के शासक सुबुकतुगिन का सबसे बड़ा पुत्र था| महमूद गजनवी को कुरान और मुस्लिम कानून का बहुत ज्ञान था| वह एक बहुत अच्छा तलवारबाज़ और निशानेबाज था|  उसने बहुत से युद्धों में अपने पिता का साथ दिया था| सुबुकतुगिन ने उसकी योग्यता से प्रभावित होकर उसे खुरासान का सूबेदार नियुक्त कर दिया| लेकिन अपनी मौत से पूर्व सुबुकतुगिन महमूद गजनवी से नाराज हो गया था और उसने अपने छोटे बेटे इस्माईल को राजगद्दी सौंप दी| महमूद गजनवी इस अपमान को सहन नहीं कर सका और उसने इस्माईल के खिलाफ विद्रोह कर दिया| महमूद ने उसे प...

सिक्खों के दसवें और आखिरी गुरु गोबिन्द देव जी का इतिहास

सिक्खों के दसवें और आखिरी गुरु गोबिन्द देव जी का इतिहास  गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के दसवे और आखिरी गुरु थे| गुरु नानक देव जी ने सीखो धर्म की स्थापना की थी और उनके उत्तराधिकारिओ के समय में इसका विकास होता रहा और गुरु गोबिन्द सिंह जी ने इस धर्म को आखिरी रूप दिया|  जन्म  गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म 22 दिसम्बर 1675 ईस्वी को आधुनिक बिहार प्रांत के पटना में हुआ था| उनके पिता का नाम तेगबहादुर और माता का नाम गुजरी देवी था| वे माता पिता के इकलोते पुत्र थे| अपनी पत्नी गुजरी , माता नानकी और अपने कृपाल चंद को पटना में छोड़ कर गुरु साहिब आगे ढाका की यात्रा पर चले गए थे| जन्म के बाद पाँच वर्ष तक गोबिन्द दास ने पटना में ही अपना जीवन बिताया| गोबिन्द दास का बचपन पंजाब के षड्यंत्रों से दूर पटना में बीता था , इस कारण से उनमें निडरता और नेक बालक के रूप में विकास हो सका था| कहा जाता हैं कि बचपन में ऐसी खेल खेला करते थे कि उनके महान राजा बनने के लक्षण दिखाई देते थे| 1671 ईस्वी में गोबिन्द राय जी और उनके माता जी पटना को छोड़ कर लखनौर में पहुच गए| यहाँ गोबिन्द राय जी की दस्तार बंधन की रस्म थी...

जानिए कौन थे गुरु तेगबहादुर जी जिन्होंने सिक्ख धर्म को बचाने के लिए शहीद हो गए

जानिए कौन थे गुरु तेगबहादुर जी जिन्होंने सिक्ख धर्म को बचाने के लिए शहीद हो गए    गुरु हरकृष्ण जी के बाद गुरु तेगबहादुर जी सिक्खों के नोवे गुरु बने| मार्च 1664 ईस्वी में गुरु हरकृष्ण जी ने अपने देहांत से पूर्व दो शब्द कहे थे 'बाबा बकाला '| इन दो शब्दों से उनका मतलब था कि उनके उत्तराधिकारी बाबा तेगबहादुर हैं जो कि बकाला में रहते हैं| गुरु हरकृष्ण जी ने तेगबहादुर जी का स्पष्ट शब्दों में नाम नहीं लिया था , इसलिए सोढ़ी परिवार के 22 व्यक्ति गुरु गद्दी के दावेदार बन गए और उनमें से सबने अपने आप को गुरु मानना शुरू कर दिया| इन सब परिस्थियों में सिक्खों के वास्तविक गुरु को पहचानना मुश्किल हो गया| कुछ समय के बाद एक घटना हुई जिससे सभी को ये यकीन हो गया कि तेगबहादुर जी ही वास्तविक गुरू हैं| 1664 ईस्वी में मक्खन शाह अपनी पत्नी और दो पुत्रों के साथ गुरु साहिब के दर्शन करने के लिए बकाला आया|  मक्खन शाह एक धनी व्यापारी था| बकाला आने से पहले जब वह जहाज में अपने माल सहित यात्रा कर रहा था तो तूफान आने के कारण उनका जीवन और माल खतरे मे पड़ गए| उस समय उसने गुरु साहिब को सच्चे दिल से याद किया और क...

जानिए सिक्खों के सबसे कम उम्र के गुरु हरकृष्ण जी का इतिहास|

 सिक्खों के आठवें गुरु हरकृष्ण जी का इतिहास | History of guru harkrishna ji  गुरु हरराय जी के देहांत के बाद गुरु हरकृष्ण जी सिक्खों के आठवे गुरु बने| जब वे गुरु बने तब उनकी उम्र मात्र 5 वर्ष की थी|  उनका जन्म 7 जुलाई 1656 ईस्वी को कीरतपुर में हुआ था| उनके पिता का नाम गुरु हरराय था और माता का नाम सुलखनी देवी था| हमने अपने पिछले ब्लॉग में बताया हैं कि गुरु हरराय जी अपने बड़े पुत्र रामराय के ववहार से दुखी से इसलिए उन्होंने अपने छोटे पुत्र को अपना उत्तराधिकारी बनाया था| सिक्ख इतिहास में उन्हे बाल गुरु कहा जाता हैं क्युकी वो पाँच वर्ष की आयु में गुरु बने थे| कहा जाता हैं उस आयु में भी उनमें असाधारण योग्ता और आध्यात्मिक शक्ति विद्यमान थी|  रामराय अपने छोटे भाई का गुरु गद्दी पर बैठना सहन नहीं कर सका| गुरु हरराय का बड़ा पुत्र होने के नाते वो गुरु गद्दी पर अपना हक समझता था| उसने बहुत से स्वार्थी मसंदों के साथ साठ गाठ करली और अपने आपको गुरु घोषित कर लिया| लेकिन सिक्खों ने रामराय को गुरु मानने से इनकार कर दिया| रामराय अब दिल्ली चला गया और औरंगजेब के पास गुरु हरकृष्ण के विरुद्ध शि...

सिक्खों के सातवें गुरु हरराय देव जी का इतिहास |

सिक्खों के सातवें गुरु हरराय देव जी का इतिहास  गुरु हरगोबिन्द जी के बाद गुरु हरराय जी सिक्खों के सातवें गुरु बने| गुरु हरराय जी का जन्म 30 जनवरी 1630 ईस्वी को हुआ था| उनके पिता का नाम बाबा गुरदिता था जो कि हरगोबिन्द जी के बड़े बेटे थे| उनकी माता का नाम निहाल कौर था| हरराय जी बचपन से ही कोमल हृदय के थे| जब वे शिकार खेलने जाया करते थे तो पशु पक्षियों को मारने की जगह उन्हे घर ले आया करते थे और उन्हे पाला करते थे| इस तरह उन्होंने घर में एक छोटा सा चिड़ियाघर बना लिया था| गुरु हरगोबिन्द जी के पाँच पुत्र थे :- बाबा गुरदिता , सुरजमल ,अनीराई और तेगबहादुर| इनमें से तीन पुत्रों का तो गुरु हरगोबिन्द जी के गुरु काल में ही देहांत हो चुका था और केवल दो ही पुत्र जीवित बचे थे तेगबहादुर और सुरजमल| सुरजमल सांसारिक में अधिक रुचि लेता था और तेगबहादुर जी त्यागी प्रवर्ति के इंसान थे| इसलिए गुरु हरगोबिन्द जी ने दोनों को ही गुरु गद्दी के योग्य ना समझते हुए अपने पोते गुरु हरराय को गुरु बनाया|  गुरु हरराय जी ने गुरु हरगोबिन्द जी के कहने पर अपने पास 2200 घुड़सवारों की सेना जरूर रखी पर उन्होंने शांति की नीति...

सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द जी का इतिहास जिन्होंने सिक्ख धर्म की रूप रेखा ही बदल दी|

सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द जी का इतिहास  सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द जी थे|  जन्म  गुरु हरगोबिन्द जी का जन्म 1595 ईस्वी में अमृतसर जिले में सतिथ वडाली नामक गाँव में हुआ| वे गुरु अर्जुन देव जी के इकलौते पुत्र थे| उनकी माता का नाम गंगा देवी था| वे सिक्खों के 6वें गुरु थे| हमने अपने पिछले ब्लॉगस में बाकी 5 गुरुओ का इतिहास भी बताया हैं आप हमारी वेबसाईट पर क्लिक करके उन्हे भी देख सकते हैं| कहा जाता हैं कि हरगोबिन्द जी बचपन से ही बहुत तेज बुद्धि के बालक थे| भाई बुड्डा जी ने उन्हे विभिन्न शस्त्रों और धार्मिक बातों का ज्ञान दिया था| 1606 ईस्वी में अपने पिता की शहीदी पर वे 11 वर्ष की उम्र में गुरु गद्दी पर बैठे| गुरु हरगोबिन्द जी ने सिक्खों के साथ हुई पिछली घटनाओ के चलते नवीन नीति धारण की , जिसके फलस्वरूप उन्होंने सिक्ख समाज में बहुत कुछ बदलाव किये|  गुरु हरगोबिन्द जी की नवीन नीति  गुरु हरगोबिन्द जी ने गद्दी पर बैठने के बाद मीरी और पीरी नामक दो तलवारे धारण की| मीरी तलवार उनका सांसारिक कार्यों में नेतृत्व करती थी और पीरी उनका आध्यात्मिक कार्यों में नेतृत्व करती थी|...

जानिए किस कारण से सिक्खों के पाँचवे गुरु अर्जुन देव जी को शहीदी मिली |

जानिए किस कारण से सिक्खों के पाँचवे गुरु अर्जुन देव जी को शहीदी मिली |     गुरु रामदास जी के बाद उनके सबसे छोटे पुत्र गुरु अर्जुन देव जी गुरु गद्दी पर बैठे| क्युकी गुरु रामदास जी के सब पुत्रों में से केवल गुरु अर्जुन देव जी ही सबसे योग्य थे| गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1563 ईस्वी को गोइंदवाल में हुआ था| उनके पिता गुरु रामदास जी सोढ़ी जाति के खत्री थे| उनकी माता का नाम बीबी भानी था| वह बहुत ही धार्मिक विचारों वाली स्त्री थी उनके ही भक्ति का प्रभाव गुरु अर्जुन देव पर भी पड़ा|  ऐसा माना जाता हैं कि गुरु अर्जुन देव जी बचपन से ही बहुत ही बुद्धिमान बालक थे| वे अपने माता पिता का बहुत सत्कार करते थे| उन्होंने भाई बुड्डा जी से गुरमुखि लिपि सीखी| उन्होंने हिन्दी , फारसी और संस्कृत का भी ज्ञान सीखा|  गुरु अर्जुन देव जी ने अपने बचपन के पहले 11 वर्ष गोइंदवाल में ही बिताएँ| उसके बाद वो अपने पिता के साथ अमृतसर चले गए थे| गुरु अर्जुन देव जी की पत्नी का नाम गंगा देवी था , जो कि फिल्लौर निवासी कृष्ण चंद की पुत्री थी| बहुत सालों तक गुरु अर्जुन देव जी के घर कोई संतान नहीं हु...