ये था इतिहास का पागल सुल्तान
क्या आप जानते हैं इतिहास में एक पागल राजा भी हुआ करता था | इतिहास में उसे मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से जाना जाता हैं | मुहम्मद बिन तुगलक का पहला नाम फखरूद्दीन मुहम्मद जूना खां था | वह ज्ञासुद्दीन तुगलक का बड़ा बेटा था | अपने पिता के दिल्ली सल्तनत के समय वह एक शूरवीर योद्धा था और जिसकी वजह से सुल्तान ने उसे युवराज नियुक्त किया था | मुहम्मद तुगलक दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों में सबसे बुद्धिमान राजा था लेकिन उसमें व्यावहारिक बुद्दिमता का अभाव था , जिसके वजह से उसकी हर योजनाए असफल होती जा रही थी |
दिल्ली की जगह देवगिरि को राजधानी बनाना (1327 ईस्वी )
मुहम्मद तुगलक ने 1327 ईस्वी में दिल्ली की जगह देवगिरि को अपनी राजधानी बनाने का सोचा | इसके कई कारण थे |
(1) उसने सोचा कि देवगिरि साम्राज्य के केंद्र में सतिथ हैं और उसके द्वारा जीते गए सभी प्रदेश जैसे :- दिल्ली , गुजरात , लखनौती , द्वारसमुन्द्र , सतगांव , सुनरगांव , कंपिल आदि सभी लगभग एक समान दूरी पर सतिथ हैं | और देवगिरि से सभी राज्यों का शासन एक प्रकार से चलाया जा सकेगा |
(2) सुल्तान से सोचा कि देवगिरि उत्तर पक्षिमी सीमा से दूर होने के कारण दिल्ली की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित रहेगी
(3) दिल्ली की जगह देवगिरि को राजधानी बनाकर वह दक्षिणी प्रदेशों पर अधिकार करना चाहता था |
इन कारणों की वजह से उसने देवगिरि को राजधानी बनाने का निश्चय किया | इसके बाद उसने सभी कर्मचारियों को देवगिरि जाने का आदेश दिया | वहाँ पर जाकर सरकारी दफ्तर खोले गए और देवगिरि का नाम बदलकर दौलताबाद रख दिया गया | सुल्तान के इस काम के कारण दिल्ली उजड़ने लगी और वहाँ के लोगों में असंतोष बढ़ने लगा | इसके बाद सुल्तान ने दिल्ली के सभी लोगों को देवगिरि में बसने का आदेश दिया | जिसके बाद सभी लोगों को मजबूरन दिल्ली को छोड़कर देवगिरि जाना पड़ा और दिल्ली एकदम खाली हो गई |
और वहाँ कुत्ते बिल्लियों तक का नामों निशान ना रहा | जब लोग दिल्ली से देवगिरि की यात्रा कर रहे थे तब लोगों को बहुत सी कठनाईओ का सामना करना पड़ा कई लोगों की इन कठनाईओ के कारण मौत हो गई और लोगों ने तो देवगिरि पहुच कर दिल्ली को छोड़ने के शोक में ही अपने प्राण दे दिए | कुछ समय के बाद उत्तरी भारत की शासन व्यवस्था बहुत बिगड़ गई जिसके कारण सुल्तान को वापस दिल्ली को अपनी राजधानी बनाना पड़ा और उसने फिर से लोगों को दिल्ली चलने का आदेश दिया | अब लोगों को वापस देवगिरि से दिल्ली तक का लंबा सफर तय करना पड़ा , जिसमें एक बार फिर बहुत से लोगों को अपनी जान ग्वानी पड़ी |
मुहम्मद बिन तुगलक के इस काम की बहुत सी लोगों ने निंदा की हैं | इतिहासकारों के अनुसार मुहम्मद बिन तुगलक के कारण बहुत से लोगों को अपनी जान ग्वानी पड़ी | उसने बिना सोचे समझे इस आदेश को लागू किया | जो लोग पीढ़ियों से दिल्ली में रह रहे थे , उन्हे सुल्तान के आदेश के कारण दिल्ली को छोड़कर देवगिरि जाना पड़ा | उन लोगों की भावनाएँ दिल्ली के साथ जुड़ी हुई थी |
और देवगिरि को राजधानी बनाने के लिए सुल्तान ने बहुत सा धन खर्च किया था और उसके बाद दिल्ली को राजधानी बनाने के लिए वापस उसे बहुत सा धन खर्च करना पड़ा | लेकिन अगर ध्यान से देखे तो सुल्तान के इस निर्णय में कुछ बाते सही भी थी | जैसे सुल्तान के अनुसार अगर देवगिरि को राजधानी बनाया जाता तो वह उत्तर भारत के साथ साथ पूरे दक्षिण और पक्षिम भारत पर अपनी नजर रख सकता था और देवगिरि भारत के केंद्र मे सतिथ था जिससे वह पूरे भारत पर अपनी हकूमत चला सकता था | लेकिन उसने बिना किसी तैयारी के देवगिरि को भारत की राजधानी बना दिया |
दोआब कर में वृद्धि (1330 ईस्वी )
मुहम्मद बिन तुगलक ने 1330 ईस्वी में दोआब के क्षेत्र में भूमि कर में वृद्धि कर दी | और ऐसा सुल्तान ने अपनी शासन व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए किया था | उसने किसानों पर बहुत अधिक कर लगा दिए | और दुर्भाग्य से जिस साल उसने बढ़ाएँ थे उसी साल दोआब में भंयकर अकाल पड़ गया | इससे किसानों की आर्थिक दशा बहुत बिगड़ गई और सरकारी कर्मचारियों ने किसानों से बहुत ही कठोरता से कर वसूला | किसान इन सब से तंग आकर खेतों को छोड़कर भाग गए | सुल्तान ने तंग आकर बहुत से किसानों को मौत के घाट उतार दिया |
तांबे के सिक्कों का प्रचलन (1330 ईस्वी )
सुल्तान ने सोने और चांदी के सिक्कों की जगह तांबे के सिक्कों को चलाना शुरू किया | सुल्तान ने ऐसा इसलिए किया था क्युकी राजधानी बदलने और दोआब कर में वृद्धि के कारण राज्य का बहुत सा धन खर्च हो गया था | 1330 ईस्वी में योजना के अनुसार पूरे साम्राज्य को सोने और चांदी के सिक्कों के स्थान पर तांबे के सिक्के बांटे गए | उन दिनों चांदी के सिक्कों को टंका और तांबे के सिक्कों को जीतल कहा जाता था | सुल्तान ने आदेश दिया कि तांबे के नए टंके को चांदी के टंके के समान समझा जाएगा | मुद्रा संबंधी योजना को सफल बनाने के लिए दो बातें आवश्यक थी |
(1) मुद्रा बनाने का ढंग केवल सरकार को ही होता था ताकि कोई दूसरा व्यक्ति ऐसे सिक्के ना बना पाएँ |
(2) जाली सिक्कों को बनाने वाले इंसान को कठोर दंड दिया जाए और सरकार के पास असली और नकली सिक्कों को पहचानने का साधन होना चाहिए |
लेकिन मुहम्मद बिन तुगलक ने इन बातों की तरफ ध्यान नहीं दिया | और उसमे एक और गलती की कि उसने टकसाल पर अपना एकमात्र नियंत्रण नहीं रखा | उस काल में सिक्के बनाने का कोई विशेष यंत्र नहीं होता था जिसके कारण सभी लोगों ने अपने घरों में भी नकली सिक्के बनाने शुरू कर दिए | इससे सरकार को बहुत हानि हुई | विदेशियों ने ये सिक्के लेने से इनकार कर दिया क्युकी ये उनके पत्थर के बराबर थे | इससे व्यापार को भी बहुत नुकसान हुआ | कुछ समय के बाद सुल्तान ने ये सिक्के बंद कर दिए और लोगों को उन तांबे के सिक्कों के बदले में चांदी के सिक्के मिलने लगे | एक बार फिर लोगों ने अपने घरों में सतिथ तांबे के बर्तनों से सिक्के बनाएँ और चांदी के सिक्के के बदले सरकार को देने लगे | शाही महल के बाहर सिक्कों का ढेर लग गया |
इस प्रयोग के कारण सुल्तान को बहूत नुकसान हुआ था | इससे राज्य को भी बहुत हानि उठानी पड़ी और सुल्तान को तो लोग मूर्ख समझने लगे | लेकिन अगर ध्यान से देखा जाएँ तो सुल्तान का ये प्रयोग कोई गलत नहीं था और सुल्तान सिक्कों के मामले में बहुत ज्ञान रखता था | लेकिन दुर्भाग्य से उस काल के लोग इस योजना को नहीं समझ पाए और उन्होंने अपने सुल्तान का कोई साथ नहीं दिया | उन लोगों की दृष्टि में तांबे का सिक्का चांदी के सिक्के के बराबर नहीं हो सकता | इसके अलावा सुल्तान एक और बड़ी भूल ये की कि उसने टकसाल पर अपना एकमात्र नियंत्रण नहीं रखा |
कृषि के विकास का प्रयोग
मुहम्मद बिन तुगलक ने कृषि के विकास के लिए एक नए विभाग की स्थापना की | इसका उद्देश्य राज्य की तरफ से धन खर्च करके कृषि का विकास करना था | इस प्रयोग के लिए भूमि के कुछ हिस्से को चुन लिया गया और उसे कृषि योग्य बनाने का कार्य शुरू किया गया | उसने भूमि के बंजर भाग को कृषि योग्य बनाने का कार्य शुरू किया और साथ ही फसलों में सुधार करना भी शुरू किया | इसके लिए सुल्तान ने किसानों को भारी मात्रा में धन दिए और उनके ऊपर शिकदार भी नियुक्त किये | लेकिन ये प्रयोग पूरी तरह से असफल हुआ और भूमि का ज्यादातर भाग बंजर ही रहा और किसानों और शिकदारों ने धन का बहुत स भाग अपने पास ही रख लिया जिसकी वजह से इस कार्य को पूरा नहीं किया जा सका |
खुरसान पर आक्रमण करने की योजना (1337 ईस्वी )
मुहम्मद बिन तुगलक एक महत्वाकांक्षी राजा था | उसने मध्य एशिया में सतिथ खुरसान पर आक्रमण करने की योजना बनाई | उस समय खुरसान एक शक्तिशाली राज्य नहीं था और मंगोल और मिस्र राज्य उसे अपने अधिकार में लेना चाहते थे | सुल्तान किसी भी कीमत में उनसे पीछे नहीं रहना चाहता था | इसलिए उसने लगभग 4 लाख सैनिकों की एक फौज बनाई और उन्हे लगभग 1 साल तक सैनिक का प्रशिक्षण दिया गया जिसके लिए राज्य के कोशागार से धन खर्च किया गया | लेकिन बाद में सुल्तान ने खुरसान को जीतने का विचार छोड़ दिया इसका कारण ये था कि मंगोलों और मिस्र ने इसका विचार छोड़ दिया था | सुल्तान की इस कारवाही के कारण बहुत से लोगों ने उसका विरोध किया कि एक तो उसने एक साल तक लाखों सैनिकों पर राज्य का धन खर्च किया और दूसरा फिर खुरासान को जीतने का विचार छोड़ दिया |
इससे राज्य को बहुत धन की हानि हुई |
तो ये था हमारा आज का लेख मुहम्मद बिन तुगलक के ऊपर आपको ये ब्लॉग पोस्ट कैसा लगा हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएँ | धन्यवाद |
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