कौन थी एन फैंक जिसने हिटलर की तानाशाही के सारे राज खोल दिए
आप में से बहुत से लोगों ने जर्मनी के तानाशाह हिटलर के बारे में जरूर सुना होगा , जिसने बहुत से यहूदियों का कत्लेआम किया और द्वितीय विश्व युद्ध में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई , लेकिन मैं आपको आज हिटलर के बारे में नहीं बल्कि हिटलर के अत्याचारों से ग्रसित एक ऐसी ही यहूदी लड़की एन फैंक के बारे में बताऊँगा जिसने अपनी डायरी में अपने उन दिनों के अनुभव के बारे में बताया हैं जब हिटलर यहूदियों के ऊपर अत्याचार किया करता था |तो आज के इस लेख में हम आपको एन फ्रैंक के बारे में बताएंगे |
नीदरलैन्ड में एक 13 वर्ष की लड़की को उसके जन्मदिन पर उसके पिता ने एक डायरी गिफ्ट की | 2 दिन बाद उसने उस डायरी को लिखना शुरू किया | उस समय एडोल्फ हिटलर अपने सैनिक कारवाहियों को अंजाम दे रहा था | उसने आस्ट्रिया , पोलैंड और चेकोसलोवाकिया जैसे देशों को हरा कर अपने अधीन कर लिया था | इसके बाद हिटलर ने जर्मनी में प्रवेश किया | ये डायरी जब एन फ्रैंक 13 वर्ष की थी | एन फ्रैंक के पिता ने अपने दफ्तर के ऊपर ही छुपने का निर्णय लिया , और इस तरह एन फ्रैंक की फॅमिली और एक और वैन फॅमिली भी थी | दोनों फॅमिली ने इस जगह 2 वर्ष बिताएँ | एन फ्रैंक के पिता ऑटो फ्रैंक को जब पता चल कि हिटलर ने नीदरलैन्ड पर भी आक्रमण कर दिया और वो अब यह से भी यहूदियों को मार रहा हैं तो उन्होंने अपने दफ्तर में छुपने का सोचा | इसके लिए उन्होंने अपने दफ्तर के दो लोगों को जोकि ईसाई थे उन्हे अपने फॅमिली के लिए घर का राशन आदि सारी सुविधाएँ पहुचाने के लिए प्राथना की |
ये दोनों बड़े ही भरोसेमंद व्यक्ति थे और उन्होंने पूरी तरह से उनकी मदद की | एन फैंक के अलावा उसके पिता ऑटो फ्रैंक उसकी माँ और उसकी छोटी बहन मारगोट थी| इसके अलावा उनके साथ वैन फॅमिली में पीटर उसके पिता और उसकी माँ थी | इनके साथ बाद में एक और यहूदी भी आकर रहने लगा | ये कुल मिला कर 8 लोग यहाँ पर रहा करते थे | एन ने अपनी डायरी में अपने सभी अनुभव के बारे में बताया हैं जो उसने उस दौरान देखे थे | वह डायरी में कहती हैं कि यहाँ पर सब कुछ बहुत अलग हैं हम एक जगह कैद होकर रह गए हैं ,हम खेल नहीं सकते , हम कही भी बाहर नहीं जा सकते हैं न ही आजादी की ज़िंदगी जी सकते हैं | एन की इस बात से पता चलता हैं कि उस दौरान हिटलर का कैसा खौफ पसरा हुआ था हर जगह | एन एक बहुत ही मज़ाकिया और हसमुख लड़की थी | जब वह अपनी पूरी फॅमिली के साथ वहाँ पर रहा करती थी
तो उसे कुछ समय पीटर से जोकि उनके साथ ही वहाँ रहा करता था से प्यार हो गया था और इस डायरी में उसके साथ अपने अनुभव के बारे में भी बताया हैं | एन की ये डायरी उसके बारे में उस समय के बारे और हिटलर के बारे में सब कुछ बताती हैं कि कैसे उन दिनों हिटलर ने लगभग आधे यूरोप में तबाही मचाई हुई थी और वो यहूदियों को यातना शिवरों में ले जाकर उन्हे मौत के घाट उतार देता था | जहां वह रहा करते थे उसके नीचे एक दफ्तर था जहां दिन के समय लोग आया करते थे और वहाँ काम किया करते थे | उनमें से एक औरत को एक दिन ये पता चला कि उनके ऊपर वाली मंजिल पर यहूदी छुपे हुए हैं | उस औरत ने तुरंत ये खबर जर्मनियों को पहुचा दी | इसके बाद जर्मनी सेना ने अगले दिन आकर सभी यहूदियों को वहाँ से बाहर निकाला और उन्हे यातना शिवरों में भेज दिया | इस तरह एन और वैन फॅमिली वहाँ लगभग 2 सालों तक रहे |
यहूदियों की गिरफ़्तारी के बाद उनमें दो इसाई कुगलर और कलईमन को एम्सटर्डम की जैल ले जाया गया ,क्युकी इन दोनों ने उन 8 यहूदियों की भरपूर सहायता की थी | 11 सितंबर 1944 को बिना किसी सुनवाई के उन्हे आर्मसफ़ोर्ट , हॉलैन्ड में एक शिविर में भेज दिया गया | कलेइमन को खराब सेहत के चलते 18 सितंबर 1944 को रिहा कर दिया गया | वह 1949 तक अपनी मौत तक आईमस्टर्डम में ही रहे | कुगलर 28 मार्च 1945 को अपने जैल से भागने में कामयाब रहे थे | उन 8 यहूदियों को जिन्हे गिरफ्तार किया गया था , पहले तो उन्हे एम्सटर्डम की जैल में ले जाया गया और फिर वहाँ से वेसतेबॉरक , हॉलैन्ड के उत्तर में दिशा में शिवरों में भेजा गया | 3 सितंबर 1944 को उन्हे पोलैंड भेजा गया | ऑटो फ्रैंक के अनुसार वैन दान को 1944 में गैस चैम्बर में डाल कर मार दिया गया | उसके बाद श्रीमती वैन दान को भी एक यातना शिविर में ले जाकर गैस चैम्बर में मार दिया गया | हालांकि उनकी मौत की तारीख का पता नहीं हैं |
इसी तरह पीटर को गैस चैम्बर में डाल कर मार दिया गया | एन फ्रैंक की माँ का भूख और थकावट की वजह से निधन हो गया था | मारगोट और एन फ्रैंक को भी यातना शिवरों में ले जाया गया और 1945 की सर्दियों में एक भयानक महामारी फैल गई जिससे एन और मारगोट दोनों की मौत हो गई और वहाँ पर बहुत से यहूदियों की मौत हो गई | दोनों लड़कियों की शवों को यहूदियों की सामूहिक कब्र में फैक दिया गया | इसके बाद 12 अप्रैल 1945 को ब्रिटिश सेना ने उन शिवरों पर कब्जा करके उन्हे मुक्त करवा दिया | इन 8 में केवल एक यहूदी ही जीवित बचा था और वो थे एन फ्रैंक के पिता ऑटो फ्रैंक | रूसी सैनिकों द्वारा उन्हे रिहा करवाया गया | इसके बाद 3 जून 1945 को वह एम्सटर्डम पहुचे और कुछ सालों बाद वह swizerland चले गए जहां उनकी बहन और उनका परिवार रहता था | बाद में उन्होंने एक लड़की से शादी कर ली , जोकि मूल रूप से वियना की रहने वाली थी और उसने भी अपने बच्चों और पति को खो दिया था |
19 अगस्त 1980 को अपनी मौत तक ऑटो फ्रैंक वही रहे , जहां उन्होंने अपनी बेटी एन फ्रैंक की डायरी जोकि एन ने उन 2 सालों में लिखी थी को पूरी दुनिया तक पहुचाया और ये बताया कि कैसे एक तानाशाही हिटलर के कारण 60 लाख निर्दोष यहूदियों को अपनी जान ग्वानी पड़ी | इस डायरी से हमें ये पता चलता हैं कि जो जख्म हिटलर ने इंसानियत को दिए हैं वो कभी भी भरे नहीं जा सकते |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें