सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जानिए महाभारत में कौन था जरासंध ?

जानिए महाभारत में कौन था जरासंध ? 



आप में से बहुत से लोगों ने महाभारत के जरासंध के बारे में जरूर सुना होगा | महाभारत में जरासंध एक बहुत ही महत्वपूर्ण किरदार था | वह बहुत ही शक्तिशाली योद्धा था , जिसने बहुत से योद्धाओ को धूल चटाया था | उसकी सेना में एक से बढ़कर एक योद्धा थे | बल्कि महाभारत का एक योद्धा एकलव्य भी जरासंध की ही सेना में था | जरासंध का जीवन जितना रहस्यमयी था , उतना ही रहस्यमयी था उसका जन्म | जरासंध के पिता का नाम राजा ब्रहदरथ था | राजा ब्रहदरथ की दो पत्नीया थी | लेकिन राजा ब्रहदरथ को दोनों में से एक से भी कोई भी संतान नहीं हुई और राजा की ये इकछा थी कि उसकी दोनों ही पत्नियों से उसे एक एक पुत्र प्राप्त हो क्युकी वो अपनी दोनों पत्नियों से समान प्रेम करते थे | एक बार राजा ब्रहदरथ अपनी पत्नियों सहित एक ऋषि के आश्रम पहुचे | जहां उन्होंने ऋषि से पुत्र प्राप्ति की याचना की | 


ऋषि ने राजा को एक आम दिया और उन्हे अपनी पत्नी को खिलाने के लिए कहा | क्युकी राजा अपनी दोनों पत्नियों से समान प्रेम करते थे इसलिए उन्होंने उस आम को आधा आधा अपनी दोनों पत्नियों को खिला दिया | कुछ समय के बाद दोनों पत्नियों ने आधे आधे बालक को जन्म दिया | राजा ने उसे मरा हुआ समझ कर उस बालक के शरीर के दोनों हिस्सों को जंगल में फिकवा दिया | वहाँ से जरा नाम की एक राक्षसी गुजर रही थी | उसने उस बालक के दोनों हिस्सों को एक साथ जोड़ दिया जिससे वो एक शरीर हो गया | उसके बाद जरा ने उस बालक को ले जाकर राजा ब्रहदरथ हो दे दिया | क्युकी जरा ने उस बालक को संधि करके यानि एक साथ जोड़ कर उसे एक बालक का रूप दिया , तो इस कारण से उस बालक का नाम जरासंध रखा गया | महाभारत में जरासंध एक बहुत ही शक्तिशाली योद्धा था | उसने बहुत से राजाओ को अपने कारागार में बंदी बना कर रखा था और जब ये गिनती 100 की हो जाती तो वो उन सब लोगों की बलि दे देता | महाभारत में जरासंध श्रीकृष्ण के मामा कसं का ससुर था | 


जब श्रीकृष्ण ने कसं का वध किया तो जरासंध ने श्रीकृष्ण से बदला लेने के लिए मथुरा पर 18 बार आक्रमण किया | लेकिन इन सभी युद्धों में से किसी भी युद्ध में उसे जीत हासिल नहीं हुई | जब पांडवों के बड़े भाई युधिसथीर ने राजसूई यज्ञ किया तो श्रीकृष्ण ने उसे जरासंध को मारने का सुझाव दिया | क्युकी राजसूई यज्ञ के लिए भारत वर्ष के सभी राजाओ का उस राजा की अधीनता स्वीकार करना जरूरी होता हैं जिसने कि राजसूई यज्ञ करना हैं और मगध उस समय बहुत ही शक्तिशाली राज्य था , जिसका राजा था जरासंध | श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन , भीम और खुद श्रीकृष्ण भी जरासंध का वध करने के लिए वेश बदल कर मगध जा पहुचे | जहां श्रीकृष्ण ने जरासंध को मल्ल युद्ध के ललकारा | जरासंध ने भीम के साथ युद्ध करना स्वीकार किया | भीम और जरासंध के बीच भीषण मल्ल युद्ध हुआ | भीम ने जरासंध को दो भागों में चीर कर दो दिशाओ में फेक दिया , लेकिन जरासंध के दोनों हिस्से आपस में जुड़ गए | भीम जितनी बार भी जरासंध को दो हिस्सों में चीरता उतनी ही बार उसके शरीर के दोनों हिस्से आपस में जुड़ जाते | 


तब श्रीकृष्ण ने भीम को कहा कि वो जरासंध के शरीर के दोनों हिस्सों को दो विपरीत दिशाओ में फैके | उसके बाद भीम ने जरासंध को मारकर उसके शरीर के दो हिस्सों को दो विपरीत दिशाओ में फेक दिया और इस तरह से जरासंध की मौत हो गई | जरासंध का एक बार सामना कर्ण के साथ भी हुआ था | कर्ण और जरासंध में भानुमती स्वयंवर के समय युद्ध हुआ था जब दुर्योधन ने जबरदस्ती भानुमती का हरण कर लिया था और कर्ण ने अपने मित्र दुर्योधन के लिए जरासंध से युद्ध किया और ये युद्ध 21 दिनों तक चला था जिसके बाद कर्ण ने जरासंध को हरा दिया था | 


तो ये था हमारा आज का ब्लॉग जरासंध के ऊपर आपको ये ब्लॉग पोस्ट कैसा लगा हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएँ और हमारी वेबसाईट KNOWLEDGE BOOK STORIES को भी जरूर फॉलो करे | धन्यवाद | 


हिन्दू धर्म के अनुसार कितने युग हैं ?

आखिर महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में ही क्यू लड़ा गया ?

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जानिए किस कारण से सिक्खों के पाँचवे गुरु अर्जुन देव जी को शहीदी मिली |

जानिए किस कारण से सिक्खों के पाँचवे गुरु अर्जुन देव जी को शहीदी मिली |     गुरु रामदास जी के बाद उनके सबसे छोटे पुत्र गुरु अर्जुन देव जी गुरु गद्दी पर बैठे| क्युकी गुरु रामदास जी के सब पुत्रों में से केवल गुरु अर्जुन देव जी ही सबसे योग्य थे| गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1563 ईस्वी को गोइंदवाल में हुआ था| उनके पिता गुरु रामदास जी सोढ़ी जाति के खत्री थे| उनकी माता का नाम बीबी भानी था| वह बहुत ही धार्मिक विचारों वाली स्त्री थी उनके ही भक्ति का प्रभाव गुरु अर्जुन देव पर भी पड़ा|  ऐसा माना जाता हैं कि गुरु अर्जुन देव जी बचपन से ही बहुत ही बुद्धिमान बालक थे| वे अपने माता पिता का बहुत सत्कार करते थे| उन्होंने भाई बुड्डा जी से गुरमुखि लिपि सीखी| उन्होंने हिन्दी , फारसी और संस्कृत का भी ज्ञान सीखा|  गुरु अर्जुन देव जी ने अपने बचपन के पहले 11 वर्ष गोइंदवाल में ही बिताएँ| उसके बाद वो अपने पिता के साथ अमृतसर चले गए थे| गुरु अर्जुन देव जी की पत्नी का नाम गंगा देवी था , जो कि फिल्लौर निवासी कृष्ण चंद की पुत्री थी| बहुत सालों तक गुरु अर्जुन देव जी के घर कोई संतान नहीं हु...

जानिए सिक्खों के सबसे कम उम्र के गुरु हरकृष्ण जी का इतिहास|

 सिक्खों के आठवें गुरु हरकृष्ण जी का इतिहास | History of guru harkrishna ji  गुरु हरराय जी के देहांत के बाद गुरु हरकृष्ण जी सिक्खों के आठवे गुरु बने| जब वे गुरु बने तब उनकी उम्र मात्र 5 वर्ष की थी|  उनका जन्म 7 जुलाई 1656 ईस्वी को कीरतपुर में हुआ था| उनके पिता का नाम गुरु हरराय था और माता का नाम सुलखनी देवी था| हमने अपने पिछले ब्लॉग में बताया हैं कि गुरु हरराय जी अपने बड़े पुत्र रामराय के ववहार से दुखी से इसलिए उन्होंने अपने छोटे पुत्र को अपना उत्तराधिकारी बनाया था| सिक्ख इतिहास में उन्हे बाल गुरु कहा जाता हैं क्युकी वो पाँच वर्ष की आयु में गुरु बने थे| कहा जाता हैं उस आयु में भी उनमें असाधारण योग्ता और आध्यात्मिक शक्ति विद्यमान थी|  रामराय अपने छोटे भाई का गुरु गद्दी पर बैठना सहन नहीं कर सका| गुरु हरराय का बड़ा पुत्र होने के नाते वो गुरु गद्दी पर अपना हक समझता था| उसने बहुत से स्वार्थी मसंदों के साथ साठ गाठ करली और अपने आपको गुरु घोषित कर लिया| लेकिन सिक्खों ने रामराय को गुरु मानने से इनकार कर दिया| रामराय अब दिल्ली चला गया और औरंगजेब के पास गुरु हरकृष्ण के विरुद्ध शि...

आखिर पल्लव कौन थे और कहाँ से आए थे

आखिर पल्लव कौन थे और कहाँ से आए थे  पल्लव कौन थे और कहा से आए , इस संबंध में काफी विवाद हैं| क्युकी दक्षिण भारत की परंपरागत शक्तियों में चेर , चोल और पाण्ड्य का नाम आता हैं , इसलिए कुछ लोग पल्लवों को विदेशी मानते हैं और ऐसे लोगों का विश्वास हैं की ये लोग पार्थिव की शाखा थे| दूसरा सिद्धांत ये हैं की वे सुदूर दक्षिण के आदिवासी थे और कुरुंब , कल्लर तथा अन्य हिंसक जातियों से उनका संबंध था| इन लोगों को संगठित कर पल्लवों ने अपने आपको शक्तिशाकी बनाया था| संगम साहित्य में पल्लवों को तोनडेयर कहा गया हैं| कृषणस्वामी आयंगर के अनुसार वे लोग उन नाग राजाओ के वंशज थे , जो सातवाहनों के सामंत थे|  भूतपूर्व सातवाहनों के दक्षिण पूर्व में पल्लवों ने अपनी राजधानी कांचीपुरम में बनाई| विदेशी पल्लव से उनकी तुलना की जा सकती हैं| इस संबंध में कहा जाता हैं की जब नंदिवर्माण द्वितीय सिंहासन पर बैठा तब उसे हाथी के आकार का ताज दिया गया , जो डैमेट्रियस के ताज की याद दिलाता हैं| ऐसा भी कहा जाता हैं की पल्लव पहले उत्तर के निवासी थे जो बहुत पहले दक्षिण में जाकर बस गए और जिन्होंने दक्षिण की परम्पराओ को अपना लिया...