अलाउद्दीन खिलजी का इतिहास | History of alauddin khilji
अलाउद्दीन खिलजी जलाउद्दीन का भतीजा था | उसका पहला नाम अली गुरशासप था | उसके पिता का नाम शहबुद्दीन खिलजी था | अलाउद्दीन का जन्म 1266 ईस्वी में हुआ था | अलाउद्दीन को बचपन में पढ़ने लिखने में कोई रुचि नहीं थी , जिसके कारण वो अनपढ़ ही बना रहा | लेकिन उसने हथियार चलाने में महारत हासिल कर ली थी , जिसके कारण आगे जाकर वो एक बहुत बड़ा योद्धा बना | जलाउद्दीन खिलजी ने अपनी पुत्री का निकाह अलाउद्दीन के साथ कर दिया और एक अन्य पुत्री का निकाह अलाउद्दीन के छोटे भाई के साथ कर दिया |अलाउद्दीन खिलजी ने बहुत से युद्धों में जलाउद्दीन की सहायता की थी , जिस कारण से जलाउद्दीन अलाउद्दीन खिलजी की बहादुरी से बहुत प्रसन्न रहता था |
1291 ईस्वी में कडा मानिकपुर के सुल्तान मलिक छज्जु ने विद्रोह कर दिया था | जिसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने मलिक छज्जु को बंदी बना कर जलाउद्दीन के सामने पेश कर दिया जिसके बाद जलाउद्दीन ने अलाउद्दीन को कडा मानिकपुर का सुल्तान नियुक्त कर दिया | इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने बहुत से युद्धों में जीत हासिल की और लूट का आधा भाग वो सुल्तान जलाउद्दीन को पहुचा दिया करता था | जलाउद्दीन ने उसकी विजयों से प्रसन्न होकर उसे अवध का सूबेदार नियुक्त कर दिया |
अलाउद्दीन को देवगिरि के धन दौलत के बारे में अपने कुछ गुप्तचरों से जानकारी मिली | उसने अब देवगिरि पर आक्रमण करने का निश्चय किया | सुल्तान जलाउद्दीन की आज्ञा लिए बिना ही उसने 8000 सैनिकों सहित देवगिरि पर आक्रमण कर दिया | उसने देवगिरि के शासक रामचन्द्र देव को पराजित करके उससे भारी मात्रा में सोना , चांदी , हीरे जवाहरात आदि लिए |
जलाउद्दीन की हत्या
जब अलाउद्दीन देवगिरि के अभियान के बाद अपार धन दौलत के साथ कडा की तरफ वापस आ रहा था तो सुल्तान जलाउद्दीन ने जो कि उस समय ग्वालियर में था , अपने सरदारों के साथ अलाउद्दीन के बारे में बात चीत की | एक बुद्धिमान सरदार ने उसे सलाह दी कि सुल्तान को चँदेरी में पहुच कर अलाउद्दीन से लूट का सारा माल ले लेना चाहिए | लेकिन सुल्तान जलाउद्दीन ने अपने भतीजे की वफादारी पर भरोसा करते हुए खुद राजधानी को लौट जाने का निर्णय किया | दिल्ली पहुचने पर अलाउद्दीन के भाई अलमास बेग ने अलाउद्दीन के इरादों के बारे में उसे विश्वास दिलाया और उसके मन से सभी शंकाये दूर कर दी |
इधर कडा पहुचने पर अलाउद्दीन ने अपने देवगिरि अभियान के बारे में सब कुछ जलालुउद्दीन को संदेश भेजा और देवगिरि अभियान से पहले सुल्तान की आज्ञा ना मांगने पर क्षमा भी मांगी | अलाउद्दीन के भाई अलमास बेग ने सुल्तान को ये विश्वास दिलाया की अलाउद्दीन युद्ध का सारा लूट पाट का धन सुल्तान को देने के लिए बेकरार हैं और वो कसूर के किले में उनसे मिलना चाहता हैं | जिसके बाद सुल्तान जलालुउद्दीन अपने सैनिकों सहित अलमास बेग के साथ कडा की तरफ चल पड़ा |
रास्ते में अलमास बेग के कहने पर सुल्तान ने अपने सैनिकों को पीछे छोड़ दिया और अपने कुछ निशस्त्र सरदारों के साथ अलाउद्दीन को मिलने के चल पड़ा | कडा पहुचने पर अलाउद्दीन ने सुल्तान का स्वागत किया और सुल्तान के पैरों में गिर कर क्षमा मांगने लगा | सुल्तान ने अपने भतीजे को अपने गले से लगा लिया | उसके बाद अलाउद्दीन और सुल्तान नाव की तरफ जाने लगे | अलाउद्दीन ने इशारे से अपने सैनिकों को आदेश दिया , जिसके बाद उसके दो सैनिकों ने बारी बारी से सुल्तान जलालुउद्दीन पर हमला करके उसका सर धड़ से अलग कर दिया | जिसके बाद अलाउद्दीन ने सुल्तान के सर का ताज उठा कर अपने सर पर पहन लिया और खुद को सुल्तान घोषित कर लिया |
अब अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली को अपने अधिकार में लेने का सोचा | जिसके बाद उसने अपने सरदारों को ऊची ऊची पदवियों से सम्मानित किया | उसने अपने साथियों को अमीर की उपाधि दी और जो पहले से अमीर थे उन्हे मलिक की उपाधि से नवाजा | अलाउद्दीन ने अपने सरदारों को जल्दी से जल्दी लोगों को सेना में भर्ती करने के लिए कहा | जल्दी ही अलाउद्दीन की बहुत बड़ी सेना तैयार हो गई | इसके बाद अलाउद्दीन अपने सैनिकों के साथ दिल्ली की तरफ बढ़ा | रास्ते में उसने सोने चांदी की वर्षा लोगों पर की | जिससे लोगों का समर्थन अलाउद्दीन को मिला | अलाउद्दीन का ये सोभाग्य था की जलालुउद्दीन की विधवा पत्नी ने अपने पुत्र अरकली खां को मुल्तान का गोवर्नर बना कर भेज दिया था |
और उसकी अनुपस्थिति में अपने दूसरे पुत्र को राजगद्दी पर बीठा दिया था | लेकिन अलाउद्दीन के आने का समाचार पाकर वो अपने साथियों के साथ मुल्तान की तरफ भाग गया था | दिल्ली पहुचने पर अलाउद्दीन ने बहुत सा धन अमीरों और सरदारों में बांटा | कोतवालों और काजियों ने अलाउद्दीन के आगे समर्पण कर दिया था | 1296 ईस्वी को बलबन के महल में उसका राज्याभिषेक हुआ था | इसके बाद अलाउद्दीन ने अपना विजय अभियान शुरू किया |
गुजरात की विजय 1297 ईस्वी
सबसे पहले अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात को विजय करने का सोचा क्युकी गुजरात का व्यापारिक दृष्टि से बहुत महत्व था और गुजरात एक धनी प्रदेश था | उसने अपने दो कमांडरों को गुजरात को विजय करने के लिए भेजा | गुजरात का शासक कर्णदेव एक कमजोर शासक था , उसमे आक्रमणकारियों का सामना करने का साहस नहीं था | वो अपनी पुत्री और पत्नी को लेकर दक्षिण की तरफ भाग गया | कुछ समय बाद उसकी पत्नी शत्रुओ के हाथ लग गई और उन्होंने उसे अलाउद्दीन के पास भेज दिया | अलाउद्दीन की सेना ने गुजरात को खूब लूटा और उसके प्रसिद्ध बंदरगाहों को भी लूटा | कुछ लोगों के अनुसार गुजरात की विजय कर्णदेव के मंत्री का विश्वासघात था | उसने अलाउद्दीन की गुजरात को विजय करने के लिए मदद की थी | उसके बाद आक्रमनकारिओ ने सोमनाथ मंदिर को भी लूटा | अलाउद्दीन के एक सेनानायक ने गुजरात के एक बंदरगाह से मलिक काफ़ुर नामक एक सुन्दर नपुंसक को 1000 दिनार में खरीदा था | जिसके कारण उसे 1000 दिनारी भी कहा जाने लगा |
रणथंभोर की विजय 1300 ईस्वी
1299 ईस्वी में सुल्तान ने अपने सेनापतियों उलग खां और नुसरत खां के अधीन सेना को रणथंभोर को विजय करने के लिए भेजा | उस समय रणथंभोर पर हमीर देव राज करता था | उसने बहुत से मुसलमानों और माँगोलों को जोकि दिल्ली के सुल्तान के शत्रु थे को अपने राज्य में शरण दी | हमीर देव ने अपने किले से शत्रुओ का डट कर सामना किया और नुसरत खां को मौत के घाट उतार दिया | उसने उलग खां को भी बुरी तरह पराजित करके दिल्ली भगा दिया |
जब अलाउद्दीन को अपने सेना की हार का पता चला तो उसे बहुत क्रोध आया | इसके बाद अलाउद्दीन ने सेना की कमान खुद अपने हाथों में ली | उसने रणनथंभोर के किले पर आक्रमण कर दिया | 11 महीने तक घेराबंदी जारी रही | राणा हमीर और उनके सैनिकों ने डट कर उनका शत्रुओ का विरोध किया | लेकिन अंत में राणा हमीर के एक सेनापति रन्नमल ने विश्वासघात किया और शत्रुओ के साथ जा मिला | अलाउद्दीन ने राणा हमीर और उनके परिवार को मौत की नींद सुला दिया | उसके बाद अलाउद्दीन ने रन्नमल का भी वध करवा दिया | क्युकी उसका ये मानना था कि एक विश्वासघाती से स्वामिभक्त होने की उम्मीद नहीं की जा सकती |
मेवाड़ की विजय 1303 ईस्वी
अब अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ पर आक्रमण करने के बारे में सोचा | मेवाड़ का राजस्थान में एक अलग ही स्थान था | मेवाड़ राजस्थान का बहुत ही महत्वपूर्ण राज्य था | उस समय मेवाड़ पर शक्तिशाली राजपूत शासक राणा रत्नसिंह राज करता था | कहा जाता हैं कि राणा रत्नसिंह की पत्नी रानी पद्मावती बहुत ही सुन्दर स्त्री थी | कहते हैं कि उसे पाने के लिए अलाउद्दीन बहुत उतावला था , जिसके कारण भी उसने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया | शुरुआत में राणा रत्न सिंह और अलाउद्दीन के बीच मित्रता के संबंध थे | एक दिन अलाउद्दीन ने रानी पद्मावती को देखने की पेशकश की | जिसपर राणा रत्न सिंह ने उसे एक आयने की मदद से पद्मावती का दीदार करवाया | जिसके बाद अलाउद्दीन के मन में पद्मावती को पाने की इच्छा और भी तेज हो गई |
जब राणा रत्न सिंह अलाउद्दीन को महल के द्वार तक छोड़ने आया तो अलाउद्दीन ने धोके से उसे बंदी बना लिया और उसे अपने साथ दिल्ली ले गया | उसके बाद उसने पद्मावती को फरमान भिजवाया कि वो राणा रत्न सिंह को तभी रिआह करेगा जब पद्मावती उसके हरम में आना स्वीकार करेगी | इस पर पद्मावती ने एक शर्त रखी कि वो तभी आएगी जब उसके साथ उसकी 700 दसियों को भी आने दिया जाएगा | जिसे अलाउद्दीन कबूल कर लेता हैं | उसके बाद पद्मावती के साथ 700 राजपूत सैनिक जोकि महिलायो के वेश में थे , दिल्ली की तरफ बढ़ चलते हैं | राजपूत सैनिकों ने दिल्ली के किले में हमला करके राणा रत्न सिंह को छुड़ा दिया और उसके सभी राजपूत योद्धा इस युद्ध में मारे गए |
इसके बाद अलाउद्दीन बहुत ही क्रोधित हो गया | उसने मेवाड़ के चित्तोडगढ़ के किले के ऊपर आक्रमण कर दिया | राजपूतों ने बादल और गोरा के नेतृत्व में आक्रमणकारियों का सामना किया और राणा रत्न सिंह समेत वे सब इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए | राजपूतों ने इस युद्ध में जिस शूरवीरता का परिचय दिया उसका इतिहास में बहुत कम ही उदाहरण मिलता हैं | पद्मावती ने अपने सैंकड़ों राजपूत नारियों के साथ अपने सतीत्व की रक्षा करते हुए जौहर की प्रथा का पालन किया | तो इस तरह अलाउद्दीन को मेवाड़ तो मिल गया लेकिन उसे पद्वावती नहीं मिली |
मालवा कि विजय 1305 ईस्वी
1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा के विशाल क्षेत्र पर अधिकार करने का सोचा | इस उद्देश्य से उसने अपने एक सेनापति आईन उल मुल्क को मालवा पर आक्रमण करने के लिए भेजा | मालवा का उस समय उत्तरी भारत में बहुत अधिक महत्व था | मालवा के साम्राज्य में बहुत से प्रदेश आते थे | वहाँ का जो राजा वह बहुत ही कमजोर था , लेकिन उसका जो सेनापति था कोका प्रधान वह बहुत ही ताकतवर था | उसने अलाउद्दीन की सेना का मुकाबला करने के लिए 40 हजार की विशाल सेना बनाई |
आईन उल मुल्क ने कोका प्रधान की सेना पर सक्रमन किया और कुछ ही समय में उसकी सेना को हरा कर रख दिया | इस युद्ध में भीषण जनसंहार हुआ और कोका प्रधान भी मारा गया | उसके बाद मालवा के राजा ने भाग कर मांडू के दुर्ग में शरण ली लेकिन शत्रुओ ने दुर्ग पर हमला कर दिया | काफी समय तक युद्ध चलता और राजा ने आक्रमनकारिओ का सामना किया | लेकिन अंत में दुर्ग के एक प्रहरी ने दरवाजा खोल दिया और आक्रमनकारिओ ने सभी को मौत की नींद सुला दिया | इस तरह अलाउद्दीन का पूरे उत्तरी भारत पर अधिकार हो गया |
देवगिरि की विजय 1306 ईस्वी
अलाउद्दीन ने मलिक काफ़ुर को देवगिरि पर हमला करने के लिए भेजा | क्युकी जब अलाउद्दीन ने जलालूउद्दीन के समय देवगिरि पर आक्रमण किया था तो देवगिरि के शासक रामचन्द्र ने अलाउद्दीन को वचन दिया था कि वह बहुत सा धन प्रतिवर्ष सुल्तान को भेजेगा | लेकिन 1303 ईस्वी से लेकर 1306 ईस्वी तक रामचन्द्र ने अलाउद्दीन को कोई भी कर नहीं दिया था | जिसके बाद अलाउद्दीन ने देवगिरि पर चढ़ाई करने की सोची | अलाउद्दीन ने मलिक काफ़ुर को ये आदेश दिया कि वो करणदेव , जिसे अलाउद्दीन ने गुजरात के युद्ध में पराजित कर दिया था और जिसने भाग कर देवगिरि में शरण ली हुई थी की पुत्री देवलदेवी को अलाउद्दीन के शाही हरम में ले आए |
मलिक काफ़ुर ने देवगिरि पर चढ़ाई कर दी | करणदेव ने शत्रुओ का सामना किया लेकिन अंत में वो पराजित हुआ और उसकी पुत्री को शाही हरम में पहुचा दिया गया | जहां उसका विवाह अलाउद्दीन ने अपने पुत्र के साथ कर दिया | मलिक काफ़ुर ने अब रामचन्द्र पर आक्रमण करना चाहा , लेकिन रामचन्द्र ने उसके आगे सर झुका दिया और उसे वादा दिया कि वो हर वर्ष अलाउद्दीन को बहुत सा देगा | उसने मलिक काफ़ुर को भी बहुत स धन देकर से भेज दिया | देवगिरि पर अधिकार करके अलाउद्दीन के लिए दक्षिण के प्रदेशों के लिए रास्ते खुल गए इसके बाद उसने दक्षिण के प्रदेशों पर आक्रमण करना शुरू किया |
दक्षिण की विजये
अब मलिक काफ़ुर ने अलाउद्दीन के आदेशानुसार वारंगल पर आक्रमण किया | वहाँ का शासक शत्रुओ का ज्यादा देर तक सामना नहीं कर पाया और उसने हार मान ली | उसने मलिक काफ़ुर को बहुत सा धन , घोड़े हाथी और देशकीमती कोहिनूर का हीरा भी दिया | अलाउद्दीन ने अब द्वारसमुन्द्र पर आक्रमण करने का सोचा क्युकी उसने इस प्रदेश के धन के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था | मलिक काफ़ुर ने अपनी सेना सहित द्वारसमुन्द्र के किले के बाहर अपने सैनिक तैनात कर दिए थे | द्वारसमुन्द्र के राजा ने मलिक काफ़ुर के साथ संधि करने
का सोचा | वह अपने साथियों सहित मलिक काफ़ुर से मिलने के लिए गया और उसे बहुत सा धन देकर वापस भेज दिया | इस युद्ध में मलिक काफ़ुर ने बिना खून बहाए ही विजय प्राप्त कर ली |
तो इस तरह अलाउद्दीन ने उत्तरी भारत पर तो अधिकार किया ही साथ ही बहुत से प्रदेशों को विजय करके उनसे धन भी बटोरा लेकिन दक्षिण के बहुत से प्रदेश उसने अपने राज्य में नहीं मिलाए | 1316 ईस्वी में अलाउद्दीन की मौत को गई | उसके बाद के शासक योग्य ना हुए|
अलाउद्दीन ने मँगोलों के खिलाफ भी कई युद्ध लड़े जिसमें उसे जीत हासिल हुई |
तो ये था हमारा आज का लेख अलाउद्दीन खिलजी के ऊपर आपको ये ब्लॉग कैसा लगा हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएँ और हमारी वेबसाईट Knowledge book stories को भी जरूर फॉलो करे | धन्यवाद |
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